Biology, asked by harshitraj70, 5 months ago

नील हरित शैवाल किस खेती के लिए उपयोगी जैव उर्वरक है​

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Answered by Anonymous
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यह जैविक खाद नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता व सुलभ विकल्प है जो धान के फसल को, न सिर्फ 25-30 किलो ग्राम नत्रजन प्रति हैक्टेयर की पूर्ति करता है, बल्कि उस धान के खेत में नील हरित काई के अवशेष से बने सेन्द्रीय खाद के द्वारा उसकी गुणवत्ता व उर्वरता कायम रखने में मददगार साबित होती है।

Answered by AdhKrisBro
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Answer:

हरित क्रान्ति के उपरान्त करीब विगत चार दशकों से अधिक अन्न उपजाने के लिए अन्धा-धुंध कृषि रसायनों तथा रासायनिक खादों के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति दिन प्रतिदिन घटती जा रही है तथा मृदा प्रदुषण बढ़ता चला जा रहा है और भूमि के स्वास्थ को अच्छा रखने वाले सुक्ष्म जीवों की संख्या घटती जा रही है। अतएव अब धान की पैदावार प्रति हे. कम होती जा रही है। ऐसी परिस्थिति में कृषि वैज्ञानिक भूमि की उर्वरा शक्ति बरकरार रखने तथा इसे बढ़ाने के लिए दूसरे विकल्पों के बारे में कार्यनीति बनाने में लगे है ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाकर टीका 3 तथा उत्तम खेती की जा सके। इस सन्दर्भ में एक जैव उर्वरक जो नील हरित शैवालों के संवर्धन से बनाया जाता है अति महत्वपूर्ण है। यह जैव उर्वरक खरीफ सीजन 20-25 कि.ग्रा. नेत्रजन प्रति हे.करता है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य को ठीक रखता है। इसके अतिरिक्त भूमि के पानी संग्रह की क्षमता बढ़ाना एवं कई आवश्यक तत्व पौधों को उपलब्ध कराता है। भूमि के पी.एच. को एक समान बनाये रखने में मदद करता है तथा अनावश्यक खरपतवारों को पनपने से रोकता है। इसे जैव उर्वरक के लगातार प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है तथा धान एवं गेहूं की उपज भी 5-10 प्रतिशत बढ़ती है।

इस जैव उर्वरकों का प्रयोग कम से कम 70 कि.ग्रा./हे यूरिया बचत करता है। जिससें अधिक यूरिया के अनावश्यक प्रयोग से भूमि उसर में नजदीक होने से बचाव होता है। इतना उपयोगी जैव उर्वरक किसान अपने खेत खलिहान पर स्वयं बनाकर अपने खेतों में प्रयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अधिक मात्रा में उत्पादित करके धनोपार्जन भी कर सकता हैं। इस जैव उर्वरक को विभिन्न तरीके से बनाया जा सकता है।

उत्पादन तकनीक

 

नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक में मुख्यतया आलोसाइरा, टोलीपोथ्रिक्स, एनावीना, नासटाक, प्लेक्टोनीमा नील हरित शैवाल होते है। ये शैवाल वायुमंडल के नेत्रजन को लेकर नेत्रजन निबन्धन करते है। यह निबन्धित नेत्रजन धान के उपयोग में तो आता ही है साथ में धान की कटाई के बाद लगायी जाने वाली अगली फसल को भी नेत्रजन तथा अन्य उपयोगी तत्व उपलब्ध कराता है। उस जैव उर्वरक को बनाने के लिए प्रारम्भिक कल्चर कृषि विभाग के जैव उर्वरक प्रकोष्ट/का.ही.वि.वि. के जैव प्रद्यौगिकी विद्यालय या वनस्पति विज्ञान विभाग से प्राप्त किया जा सकता है। एक पैकेट प्रारम्भिक कल्चर से काफी मात्रा में जैव उर्वरक बनाया जा सकता है पुनः इस बने हुए जैव उर्वरकों को संमबर्धित करके और अधिक मात्रा में जैव उर्वरक बना सकते है। नील हरित शैवाल जनित जैव उर्वरक निम्न लिखित विभिन्न तरीकों से बनाया जा सकता है।

टैंक विधि

 

1. 5 मीटर लम्बा, 1.5 मी. चौड़ा और 30 से.मी. गहरा पक्का गढ्ढा (टंकि) ईट तथा सिमेन्ट की बनवा ले। हर टंकी में पानी भरने तथा पानी निकासी की व्यवस्था बनवा दे। जिससे समयसे पानी भरने तथा टंकी से पानी निकालने में आसानी हो।

2. टंकियों में दोमट मिट्टी 1.5 कि.ग्रा.- 2.0 कि.ग्रा. प्रति मीटर की दर से भूरभूरी करके डाल दे।

3. टंकियों में 10-12 से.मी. पानी भर दे तथा 200 ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हे. की दर से टंकी में डाल दे। यदि टंकी के पानी का पी.एच. साधारण पानी के पी.एच यानि (7.0) से कम हो जाय तो आवश्यकतानुसार चूना डाल दें। ऐसा करने से टंकी का पानी का पी.एच. बढ़ जायगा। अमूमन 200 ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट डालने से पानी के पी.एच. में कोई ज्यादा कमी नही आती है।

4. टंकी में 50 ग्रा. कार्बेफयूरान/20-25 मि.ली. एन्डोसल्फान मिला दे ताकि मच्छर या अन्य कीड़े मकोड़े टंकी के पानी में प्रजनन न कर सके।

5. उपरोक्त सभी चीजों को पानी में ठीक से मिलाने के बाद छोड़ दे ताकि मिट्टी टंकी की सतह पर बराबर से बैठ जाय। इसके उपरान्त नील हरित शैवाल का प्रारम्भिक कल्चर (कृषि विभाग या का.ही.वि.वि.) से लाकर 100 ग्रा. प्रति स्कॉयर मीटर की दर से सावधानी पूर्वक पानी की सतह पर छिड़क दें।

6. 10 से 15 दिनों में मोटी नील हरित शैवाल की तरह पानी पर उग आयेगी यदि इस दौरान टंकी में पानी की सतह 5 से.मी. से कम होता है तो पुनः पानी आवश्यकतानुसार 5-7 से.मी. तक भर दें।

7. नील हरित शैवाल की मोटी तह बन जाने पर (10-12 दिन के बाद) टंकी के पानी को ड्रेन पाइप से बाहर निकाल दे या यदि पानी कम हो गया हो 2-3 से.मी. मात्र हो तो धूप में ही छोड़ दें दो-दिन में अपने से ही सूख जायेगा। सूखने के बाद मिट्टी के साथ नील हरित शैवाल की पपड़ी बन जायेगी। इस पपड़ी को खुरच कर पालीथीन के थैलों में 1 कि.ग्रा. 500 ग्रा. के पैकेट बना लें।

पुनः टंकियों में 10-12 से.मी. पानी भरकर खाद, कीटनाशी या अन्य आवश्यक पदार्थ उपरोक्त वर्णित विधि के अनुसार डालकर 10-12 दिन बाद पुनः दूसरी खेप उत्पादित कर ले। इस तरह हर साल में 20-25 का नील हरित जैविक खाद बना सकते है और खरीफ सीजन में इन जैविक खादों का प्रयोग धान की उपज बढ़ाने तक भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में उपयोग कर सकते है।

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