Hindi, asked by kesjarwamiabhishek, 10 months ago

नील परिधान बीच सुकुमार
खुल रहा मृदुल अधखुला अंग,
खिला हो ज्यों बिजली का फूल
मेघ-बन बीच गुलाबी रंग।
ओह! वह मुख! पश्चिम के व्योम-
बीच जब घिरते हों घन श्याम;
अरुण रवि मंडल उनको भेद
दिखाई देता हो छविधाम!​

Answers

Answered by khusheeyadav1359
13

Answer:

bro or sis explain me what to do with these lines

Answered by bhatiamona
34

सन्दर्भ — उपरोक्त पंक्तियां ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित ग्रंथ “कामायनी” के श्रद्धा सर्ग से ली गई हैं। इस कविता में कवि ने मनु व श्रद्धा के बीच हुए संवाद का वर्णन तथा श्रद्ध का सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या — कवि कहता है कि उस नीले आवरण के बीच से श्रद्धा का कोमल अंग ऐसे दिखाई दे रहा था कि ऐसा लग रहा था कि मानो मेघ रूपी वनों के बीच में कोई गुलाबी रंग का बिजली का फूल खिला हो।

कवि कहता है कि उसका मुख बड़ा ही सुंदर था। शाम के समय पश्चिम दिशा में जब काले बादल आ जाते हैं और सूर्य अस्त होने से पहले छुप जाता है। किंतु लाल सूर्य काले बादलों को चीर कर जब दिखाई देता है तो वह बड़ा ही सुंदर दिखाई देता है। श्रद्धा के मुख का सौंदर्य भी बिल्कुल वैसा ही प्रतीत हो रहा है।

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