निललिखित में से किसी एक विषय पर 80 -100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए | पर्यावरण प्रदूषण
पर्यावरण का अर्थ और स्वरूप, पर्यावरण प्रदूषण कारण, प्रदूषण प्रकार, पर्यावरण का
समाधान
Answers
Answer:
निललिखित में से किसी एक विषय पर 80 -100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए | पर्यावरण प्रदूषण
पर्यावरण का अर्थ और स्वरूप, पर्यावरण प्रदूषण कारण, प्रदूषण प्रकार, पर्यावरण का
समाधान
Answer:
पर्यावरण प्रकृति की सहज संरचना है। इस प्रकृति की स्वाभाविक दशा में हस्तक्षेप करके मनुष्य उसे प्रतिकूल बनाता है और प्रदूषण उत्पन्न करने में सहायक बनता है। वर्तमान समय में भौतिक सुख-सुविधाओं का भोगी मानव प्रदूषण की विभीषिका को दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक गहन और विस्तृत बनाता जा रहा है जिसकी परिणति विभिन्न प्रकार की नवीन बीमारियों का लगातार बढ़ता प्रकोप, संक्रामक रोगों का विस्तार, जलवायु परिवर्तन, वर्षा की अनियमितता, सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि-अनावृष्टि, पृथ्वी का बढ़ता तापमान, समुद्र के जलस्तर की वृद्धि, तेजाबी वर्षा, ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन छिद्र और वनस्पतियों एवं जीवों की विविध प्रजातियों का नष्ट होना है। जीव-जगत एवं प्रकृति के नि:शुल्क उपहार, लगातार संदूषित होते जा रहे हैं और उनके स्वस्थ रूपों का मनुष्य उपभोग नहीं कर पा रहा है, फलत: विविध प्रकार की बीमारियों से अस्वस्थ बनता जा रहा है। पर्यावरण का अपक्रम उसी समय से प्रारम्भ हो गया था, जबसे मनुष्य ने आग जलाना सीखा।
‘पर्यावरण’ : अर्थ एवं परिभाषा
‘पर्यावरण’ एक व्यापक शब्द है। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण भौतिक परिवेश जलवायु, पेड़-पौधे, मिट्टी और प्रकृति के अन्य तत्व तथा जीव-जन्तु सम्मिलित हैं। जब पर्यावरण के सभी घटक पारस्परिक तालमेल नहीं रखते तो पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। पर्यावरण के सभी तत्व प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य और मानव कल्याण को प्रभावित करते हैं।
‘‘पर्यावरण’’ शब्द ‘‘परि’’ और ‘‘आवरण’’ से मिलकर बना है, जिसमें सम्पूर्ण जड़ और चेतन सम्मिलित हैं। पृथ्वी के चारों ओर प्रकृति तथा मानव निर्मित समस्त दृश्य-अदृश्य पदार्थ पर्यावरण के अंग है। हमारे चारों ओर का वातावरण और उसमें पाये जाने वाले प्राकृतिक, अप्राकृतिक, जड़, चेतन सभी का मिला-जुला नाम पर्यावरण है और उसमें पारस्परिक ताल-मेल और अन्योन्य क्रिया व पारस्परिक प्रभाव को पर्यावरण संतुलन कहते हैं।
व्यापक अर्थों में पर्यावरण उन सम्पूर्ण शक्तियों, परिस्थितियों एवं वस्तुओं का योग है, जिनसे मनुष्य घिरा हुआ है तथा अपने क्रियाकलापों से उन्हें प्रभावित करता है। आनुवांशिकता और पर्यावरण दो अत्यंत महत्त्वपूर्ण कारक हैं जिनसे मानव सबसे अधिक प्रभावित होता है। मनुष्य ही सम्पूर्ण जीव जगत का केंद्र बिंदु है और आनुवांशिकता उसकी अंर्तनिहित क्षमताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करती है। पर्यावरण इन क्षमताओं को भू-सतह पर लाता है। इस प्रकार से मानव तथा अन्य जीव पृथ्वी तथा उसके पर्यावरण के अविभाज्य अंग हैं और पृथ्वी को अविभाज्य इकाई का स्वरूप प्रदान करते हैं।
‘पर्यावरण’ को परिभाषित करते हुए ‘‘हर्षकोविट्स’’ ने लिखा है - ‘‘पर्यावरण संपूर्ण वाह्य परिस्थितियों एवं प्रभावों का जीवधारियों पर पड़ने वाला सम्पूर्ण प्रभाव है जो उनके जीवन विकास एवं कार्य को प्रभावित करता है।’’
पार्क2 के अनुसार ‘‘पर्यावरण का अर्थ उन दशाओं के योग से होता है जो मनुष्य को निश्चित समय में निश्चित स्थान पर आवृत करती हैं।’’
गाउडी3 ए. ने अपने पुस्तक ‘The Nature Of Environment’ में पृथ्वी के घटकों को ही पर्यावरण का प्रतिनिधि माना है तथा उनके अनुसार पर्यावरण को प्रभावित करने में मनुष्य एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
टान्स्ले4 ‘‘पर्यावरण को उन सम्पूर्ण प्रभावी दशाओं का योग कहा है, जिसमें जीव रहते हैं।’’
डॉ. दीक्षित5 ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा- ‘‘पर्यावरण विश्व का समग्र दृष्टिकोण है क्योंकि यह किसी समय संदर्भ में बहुस्थानिक तत्वीय एवं सामाजिक आर्थिक तंत्रों, जो जैविक एवं अजैविक रूपों के व्यवहार/आचार पद्धति तथा स्थान की गुणवत्ता तथा गुणों के आधार पर एक दूसरे से अलग होते हैं, के साथ कार्य करता है।’’
अर्थात पर्यावरण विश्व का समग्र दृष्टिकोण है तथा इसकी रचना स्थानिक तत्वों वाले एवं विभिन्न सामाजिक आर्थिक तंत्रों से होती है। ये विभिन्न तंत्र अलग-अलग विशेषताओं वाले होते हैं। इन विभिन्न तंत्रों के साथ पर्यावरण सक्रिय रहता है। आगे डॉक्टर दीक्षित ने कहा - ‘‘पर्यावरण की परिभाषा और विषय क्षेत्र हमारे हित तथा अभिरुचि एवं प्राथमिकताओं द्वारा निर्धारित होते हैं। हमारा तात्कालिक हित हम जिस स्थान पर रहते हैं, वायु जिसमें सांस लेते हैं, आहार जिसे हम खाते हैं, जल जिसे हम पीते हैं, संसाधन जिसे हम अपनी अर्थ व्यवस्था को पुष्ट बनाने के लिये पर्यावरण से प्राप्त करते हैं - की गुणवत्ता है।’’