निम्िलिखित गदययंश िो ध्ययि से पहिए तथय उसिे िीचे लििे गए प्रश्िों िे उत्तर हिन्दी में लिखिए ।
उत्तर यथयसंभि आपिे अपिे शब्दों में िोिे चयहिए : - [5]
पजडडत शािीराम को यह आशा न थी कक कोयलों में हीरा समल िाएगा । घोर ननराशा ने आशा के
द्िार चारों ओर से बन्ि कर दिए । िे उन हतभाग्य मनुष्ट्यों में से थे, िो संसार में असफल, के िल असफल
रहने के सलए उत्पन्न होते हैं । सोने को हाथ लगाते थे, िह भी समट्टी हो िाता था । उनकी ऐसी धारर्ा ही
नहीं, पतका विश्िास था कक यह प्रयत्न भी कभी सफल न होगा, परन्तुलाला सिानन्ि के आग्रह पर
दिनभर बैठकर तस्िीरें छााँटते रहे । न मन में लगन थी, न हृिय में चाि, परन्तुलाला सिानन्ि की बात
को टाल न सके । शाम को िेखा िो सौ एक – से – एक बदढ़या चचत्र हैं । उस समय िे उन्हें िेखकर स्ियं
उछल पड़े । उनके मुख पर आनंि की आभा नत्ृय करने लगी, िैसे फे ल हो िाने का विश्िास करके अपने
प्रारब्ध पर रो चकुे विद्याथी को पास हो िाने का तार समल गया हो । उस समय िह कैसा प्रसन्न होता
है । चारों ओर कैसी विजस्मत और प्रफुजललत दृजष्ट्ट से िेखता है । यही अिस्था पजडडत शािीराम की थी ।
िे उन चचत्रों की ओर इस प्रकार िेखते थे, मानो उनमें से प्रत्येक िस-िस रुपये का नोट हो । बच्चों को
उधर िेखने न िेते थे । िे सफलता के विचार से प्रसन्न हो रहे थे, िैसे सफलता प्राप्त हो चकु ी हो, यद्यवप
िह अभी कोसों िरू थी । लाला सिानन्ि की आशा उनके मजस्तष्ट्क में ननश्चय का रूप धारर् कर चकु ी
थी ।
लाला सिानन्ि ने चचत्रों को अलबम में लगाया और कुछ उच्च कोदट के समाचार – पत्रों में विज्ञापन
िे दिया । अब पजडडत शािीराम हर समय डाककये की प्रतीक्षा करते थे ।
इस प्रकार एक मदहना बीत गया, परन्तुकोई पत्र न आया । पजडडत शािीराम सिधण ा ननराश हो गये,
परन्तुकफर भी कभी – कभी सफलता का विचार आ िाता था, जिस प्रकार अधाँ ेरे में िुगनूकी चमक ननराश
हृियों के सलए कै सी िीिनिानयनी, कैसी हृियहाररर्ी होती है । इसके सहारे भूले हुए पचथक मंजिल पर
पहुाँचने का प्रयत्न करते हैं।
(i) पजडडत शािीराम को तया विश्िास नहीं हो रहा था ? तयों ?
(ii) लाला सिानन्ि ने उन्हें तया विश्िास दिलाया था ?
(iii) पजडडत शािीराम की आचथणक जस्थनत कै सी थी ? तस्िीरें समल िाने पर शािीराम को कै सी
प्रसन्नता हुई ?
(iv) पजडडत शािीराम आशा – ननराशा के बीच कैसे झूल रहे थे ?
(v) समाचार – पत्रों में विज्ञापन तयों दिया गया ?
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