Hindi, asked by sahejpalsingha, 7 months ago

निम्िलिखित पंक्ततयों में प्रयुतत रस तथा उसके स्थायी भाव को बताइए -

क) अखिि भुवि चर – अचर सब, हरर मुि में िखि मातु।

चककत भई गद्गद् वचि, ववकलसत दृग पुिकातु।।

1

ि) उधो, मि ि भए दस बीस।

एक हुतो सो गयौ स्याम सगं , को अवराधै ईस॥​

Answers

Answered by Anonymous
1

Answer-:

In these lines this is sanskrit Because I am very weak in tis sunject sry dear....

pls mark me as a brainlist.....

Answered by bhatiamona
2

(1) अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।

चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।।​

निम्नलिखित पंक्ति में अद्भुत रस  है |

अद्भुत रस का स्थायी भाव 'विस्मय' है |

अद्भुत रस—जब मनुष्य के मन में किसी ऐसी बात को  जिसे पढ़कर या सुनकर आश्चर्य हो और देख के आश्चर्य भाव उत्पन्न होते है तो उसे अद्भुत रस कहते है। अद्भुत रस अनुभाव अन्दर आँसू आना, काँपना, आँखे फाड़कर देखना आदि के भाव व्यक्त होते हैं|

उदाहरण--- जैसे किसी के बीमारी की खबर सुनना|  फेल होने की खबर सुनना |   किसी को बड़े समय बाद देखना|

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उधो, मन न भए दस बीस।

एक हुतो सो गयौ स्याम संग, को अवराधै ईस॥

निम्नलिखित पंक्ति इसमें वियोग श्रंगार रस है।

श्रंगार रस में स्थाई भाव रति होता है |

वियोग श्रृंगार रस श्रृंगार रस का एक प्रकार है, दूसार संयोग श्रंगार होता है। वियोग श्रंगार में नायक और नायिका में परस्पर प्रेम होने के बाद भी उनका मिलन नहीं हो पाता, वहाँ पर वियोग श्रृंगार रस की उत्पत्ति होती है। यहाँ पर गोपियां श्री कृष्ण के प्रति प्रेम भाव तो प्रकट कर रही है, लेकिन उनका श्री कृष्ण से मिलन नहीं हो पाया है, वह श्री कृष्ण की विरह-वेदना से पीड़ित हैं और उद्धव को अपनी व्यथा व्यक्त कर रही हैं। गोपिया उद्धव से कहती हैं कि हमारा एक ही तो मन था, उस मन को श्याम अर्थात श्री कृष्णा ले गए। हमारे पास कोई दस-बीस मन तो है नहीं जो हम मन को बांटते फिरें। इसलिए हमारी इस दशा में तुम हमको व्यर्थ के उपदेश ना दो। तुम हमारी वेदना और पीड़ा को क्या जानों।

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निम्नांकित पंक्ति में पहचान कर बताइए कि कौन-सा रस है ? उस रस की परिभाषा देते हुए उसका स्थायी भाव भी लिखिए—

अति मलीन बृषभानुकुमारी ।

हरि स्त्रमजल अंतर तनु भीजे ता लालच न धुआवति सारी ।।

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