निम्म पदों में समास का प्रकार बताइए-
आशा-निराशा
सत्याग्रह
स्वर्णकमल
आजीवन
सूर्योदय
प्रतिक्षण
रूपलता
निम्न समस्त पदों के सही विग्रह कीजिए
त्रिभुवन
हस्तलिखित
चतुर्भुज
दशानन
आमरण
चरणकमल
सप्ताह
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह कर समास का नाम लिखिए-
भरपेट
नीलगगन
नीलकंठ
घुड़सवार
लौहपुरुष
दिन-रात
《 PEOPLE WHO GIVE ANSWER RIGHT I FOLLOW THEM .》
《 BUT WHEN ANSWER IS WRONG I REPORTED YOUR ANSWER !!! 》
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Answer:
समास
परिभाषा : 'समास' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है 'छोटा रूप'। अतः जब दो या दो से अधिक शब्द (पद) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते है, उसे समास, सामाजिक शब्द या समस्त पद कहते है।
जैस : 'रसोई के लिए घर' शब्दों में से 'के लिए' विभक्त का लोप करने पर नया शब्द बना 'रसोई घर', जो एक सामासिक शब्द है।
किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते है।
जैसे : विद्यालय = विद्या के लिए आलय, माता पिता = माता और पिता
समास के प्रकार :
समास छः प्रकार के होते है-
1. अव्ययीभाव समास
2. तत्पुरुष समास
3. द्वन्द्व समास
4. बहुब्रीहि समास
5. द्विगु समास
6. कर्म धारय समास
1. अव्ययीभाव समास :
(A). पहला पद प्रधान होता है।
(B). पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है। (वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के अनुसार नही बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
(C). यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।
(D). संस्कृत के उपसर्ग युक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते है।
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
यथाक्रम = क्रम में अनुसार
यथावसर = अवसर के अनुसार
यथाशीघ्र = जितना शीघ्र हो
यथाविधि = विधि के अनुसार
यथेच्छा = इच्छा के अनुसार
आसमुद्र = समुद्रपर्यन्त
भरपेट = पेट भरकर
अनुकूल = जैसा कूल है वैसा
यावज्जीवन = जीवन पर्यन्त
निर्विवाद = बिना विवाद के
दरअसल = असल में
बाकायदा = कायदे के अनुसार
साफ-साफ = साफ के बाद साफ, बिलकुल साफ
घर-घर = प्रत्येक घर, हर घर, किसी भी घर को न छोड़कर
हाथों-हाथ = एक हाथ से दूसरे हाथ तक, हाथ ही हाथ में
2. तत्पुरुष समास :
(A). तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन दूसरे पद के अनुसार होता है।
(B). इसका विग्रह करने पर कर्ता व सम्बोधन की विभक्तियों(ने,हे,ओ,अरे) के अतिरिक्त किसी भी कारक की विभक्त प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते है। जैसे-
(क). कर्म तत्पुरुष (को) :
कृष्णार्पण = कृष्ण को अर्पण
वन-गमन = वन को गमन
प्राप्तोदक = उदक को प्राप्त
नेत्र सुखद = नेत्रों को सुखद
जेब करता = जेब को कतरने वाला
(ख). करण तत्पुरुष (से/के द्वारा) :
ईश्वर-प्रदत्त = ईश्वर से प्रदत्त
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा रचित
रत्न जड़ित = रत्नों से जड़ित
हस्त-लिखित = हस्त (हाथ) से लिखित
दयार्द्र = दया से आर्द्र
(ग). सम्प्रदान तत्पुरुष (के लिए) :
हवन-सामग्री = हवन के लिए सामग्री
गुरु-दक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा
विद्यालय = विद्या के लिए आलय
बलि पशु = बलि के लिए पशु
(घ). अपादान तत्पुरुष (से पृथक्) :
ऋण-मुक्त = ऋण से मुक्त
मार्ग भ्रष्ट = मार्ग से भ्रष्ट
प्रेम-सागर = प्रेम का सागर
राजमाता = राजा की माता
अमचूर = आम का चूर्ण
रामचरित = राम का चरित
(छ). अधिकरण तत्पुरुष (में, पे, पर) :
वनवास = वन में वास
ध्यान-मग्न = ध्यान में मग्न
घृतान्न = घी में पका अन्न
जीवदया = जीवों पर दया
घुड़सवार = घोड़े पर सवार
कवि पुंगव = कवियों में श्रेष्ठ
3. द्वन्द्व समास :
(A). द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते है।
(B). दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते है, सदैव नहीं।
(C). इसका विग्रह करने पर 'और' अथवा 'या' का प्रयोग होता है।
माता-पिता = माता और पिता
पाप-पुण्य = पाप या पुण्य / पाप और पुण्य
जलवायु = जल और वायु
भला-बुरा = भला या बुरा
अपना-पराया = अपना या पराया
धर्माधर्म = धर्म या अधर्म
फल-फूल = फल और फूल
रुपया-पैसा = रुपया और पैसा
नील-लोहित = नीला और लोहित (लाल)
सुरासर = सुर या असुर/सुर और असुर
यशापयश = यश या अपयश
शस्त्रास्त्र = शस्त्र और अस्त्र
4. बहुब्रीहि समास :
(A). बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नही होता।
(B). इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
(C). इसका विग्रह करने पर 'वाला, है, जो जिसका, जिसकी, जिसके, वह' आदि आते है।
गजानन = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)
सुग्रीव = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह
नीलकण्ठ = नीला कण्ठ है जिसका वह
मयूरवाहन = मयूर है वाहन जिसका वह
कमलनयन = कमल के समान नयन है जिसके वह
अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह
चन्द्रमुखी = चन्द्रमा में समान मुखवाली है जो वह
दिगम्बर = दिशाएँ ही है जिसका अम्बर ऐसा वह
षडानन = षट् (छः) आनन है जिसके वह (कार्तिकेय)
आजानुबाहु = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ है जिसकी वह
कुशाग्रबुद्धि = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी वह
त्रिनेत्र = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)
5. द्विगु समास :
(A). द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी परपद भी संख्यावाचक देखा जा सकता है।
(B). द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसा की बहुब्रीहि समास में देखा है।
(C). इसका विग्रह करने पर 'समूह' या 'समाहार' शब्द प्रयुक्त होता है।
दोराहा = दो राहो का समाहार
पक्षद्वय = दो पक्षो का समूह
त्रिभुज = तीन भुजाओं का समाहार
संकलन-त्रय = तीन का समाहार
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार
सप्ताह = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार
सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार
अष्ट-सिद्धि = आठ सिद्धियों का समाहार
नवरात्र = नौ रात्रियों क समाहार
त्रिरत्न = तीन रत्नों का समूह
भुवन-त्रय = तीन भुवनो का समाहार
चतुर्वर्ण = चार वर्णों क समाहार
पंचपात्र = पाँच पात्रों का समाहार
6. कर्मधारय समास :
(A). कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा विशेष्य।
(B). इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर 'रूपी' शब्द प्रयुक्त होता है।
पुरुषोत्तम = पुरुष जो उत्तम
महापुरुष = महान् है जो पुरुष
पीताम्बर = पीत है जो अम्बर
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निम्नलिखित विग्रहों के समस्त पद बनाकर समास के नाम लिखिए-
(अ) विधि के अनुसार (ब) पाँच तत्वों का समूह
उत्तर :-
(अ) विधि के अनुसार का समस्त पद है :-यथाविधि ( तत्पुरुष समास )
(ब) पाँच तत्वों का समूह का समस्त पद है :- पंचतत्व ( द्विगु समास )
समास का मतलब है संक्षिप्तीकरण। दो या दो से अधिक शब्द मिलकर एक नया एवं सार्थक शब्द की रचना करते हैं। यह नया शब्द ही समास कहलाता है।
यानी कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जा सके वही समास होता है।
समास के उदाहरण : -
1. कमल के सामान चरण : चरणकमल
2. रसोई के लिए घर : रसोईघर
3. घोड़े पर सवार : घुड़सवार
4. देश का भक्त : देशभक्त
5. राजा का पुत्र : राजपुत्र आदि।
सामासिक शब्द या समस्तपद : जो शब्द समास के नियमों से बनता है वह सामासिक शब्द या समस्तपद कहलाता है । पूर्वपद एवं उत्तरपद : सामासिक शब्द के पहले पद को पूर्व पद कहते हैं एवं दुसरे या आखिरी पद को उत्तर पद कहते हैं।
समास के छः भेद होते है : -
1. तत्पुरुष समास
2. अव्ययीभाव समास
3. कर्मधारय समास
4. द्विगु समास
5. द्वंद्व समास
6. बहुव्रीहि समास
1. तत्पुरुष समास :- जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है एवं पूर्वपद गौण होता है वह समास तत्पुरुष समास कहलाता है। जैसे:
धर्म का ग्रन्थ : धर्मग्रन्थ
राजा का कुमार : राजकुमार
तुलसीदासकृत : तुलसीदास द्वारा कृत
2. अव्ययीभाव समास : -
वह समास जिसका पहला पद अव्यय हो एवं उसके संयोग से समस्तपद भी अव्यय बन जाए, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास में पूर्वपद प्रधान होता है। अव्यय : जिन शब्दों पर लिंग, कारक, काल आदि शब्दों से भी कोई प्रभाव न हो जो अपरिवर्तित रहें वे शब्द अव्यय कहलाते हैं। अव्ययीभाव समास के पहले पद में अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर, आदि आते हैं। जैसे:-
आजन्म: जन्म से लेकर
प्रतिदिन : दिन-दिन
3. कर्मधारय समास :-
वह समास जिसका पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है, अथवा एक पद उपमान एवं दूसरा उपमेय होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। कर्मधारय समास का विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच में ‘है जो’ या ‘के सामान’ आते हैं। जैसे:
महादेव : महान है जो देव
दुरात्मा : बुरी है जो आत्मा
करकमल : कमल के सामान कर
4. द्विगु समास :-
वह समास जिसका पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्तपद समाहार या समूह का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे:
दोपहर : दो पहरों का समाहार
सप्ताह : सात दिनों का समूह
5. द्वंद्व समास :-
जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों एवं दोनों पदों को मिलाते समय ‘और’, ‘अथवा’, या ‘एवं ‘ आदि योजक लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे:
अन्न-जल : अन्न और जल
अपना-पराया : अपना और पराया
6. बहुव्रीहि समास : -
जिस समास के समस्तपदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं हो एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं वह समास बहुव्रीहि समास कहलाता है। जैसे:
गजानन : गज से आनन वाला
त्रिलोचन : तीन आँखों वाला
मुरलीधर : मुरली धारण करने वाला
jai siya ram☺ __/\__
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¯\_(ツ)_/¯