Hindi, asked by aneeshkhan7828, 6 hours ago

निम्न की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए:
है.
यौवन तेरी चंचल छाया
क्षण भर बैठ घूट भर पी लूँ
जो रस तू है लाया
मेरे प्याले में मद बनकर कब तू छली समाया।
जीवन-वंशी के छिद्रों के स्वर बनकर लहराया।​

Answers

Answered by shishir303
6

यौवन तेरी चंचल छाया ।  

इसमे बैठे घूंट भर पी लूं, जो रस तू है लाया

मेरे प्याले में मद बनकर कब तू छली समाया।

जीवन-वंशी के छिद्रों के स्वर बनकर लहराया।​

संदर्भ ➲ ये पंक्तियां ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा रचित ‘ध्रुव स्वामिनी’ नाटक के ‘कोमा का गीत’ की पंक्तियां हैं। नाटक की ही एक पात्र ‘कोमा’ स्वयं से ही बात करते समय ये गीत गाती है।

व्याख्या ➲ लेखक कहते हैं कि यौवन काल का समय मन चंचल और इधर-उधर भटकने वाला होता है। लेकिन यौवन काल ही सुनहरा काल होता है। इस यौवन की छाँव मे रहकर सब यौवन का रस पीना चाहते हैं, अर्थात इस यौवनकाल का पूरा आनंद उठाना चाहते है। जब ये यौवन रूपी आनंद मद बनकर प्यालों में छलकर रहा है, तो इस यौवन रूपी रस को पीने से जीवन आनंद की तरंगों से कम्पित हो उठता है। अर्थात इस यौवन का पूरा लाभ उठाने से पूरे जीवन को सार्थक रूप से जी लिया जाता है।

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Answered by barani79530
1

Explanation:

please mark as best answer and thank me

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