निम्न लिखित अपठित पद्यांष को पढ़कर प्रष्नों के उत्त्र दीजिये | उनसेे ईर्ष्या क्या जो सपनों के जंगल में अपने से ही निर्वासित है। वे करूणा के पात्र, जूझती मानवता के साथ जूझने की उमंग से वे वंचित हैं। उन पर कैसा व्यंग्य व्यंग्य जो स्वयं समय के बने हुये हैं। हमने जीवन को दुखान्त नाटक समान स्वीकार किया है, अपना देखा दोष न हमने औरों को ही दोष दिया है। कुछ विधान है जो निर्मम गति से चलता है | 1. कवि किन से ईर्ष्या न करने को कहता है?
जो आशवादी है
जिन्हे अच्छे जीवन के स्वप्न भी नहीं आते
जो निराशावादी है
जो जीवन को सुखद मानते हैं।
2. हमारी करूणा के पात्र वे व्यक्ति हैं जो-
दूसरों की भलाई करते हैं
दूसरों से ईर्ष्या करते हैं
जूझने की उमंग से भी वंचित है
बहुत निर्बल है
3. विधान है जो निर्मम गति से चलता है पंक्ति का आशय है-
विधान की गति तीव्र होती है
निर्मम गति से चलने वाला विधान कहलता है
जो विधान है वह निर्मम है
विधान में जो कुछ है वह होकर ही रहता है
4. विधान का सामानार्थक है-
संविधान
भाग्य
नियम
इनमे से कोई नहीं
5. उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक बताइए-
गरीब लोग
निर्मम गति
नियति की विडम्बना
करूणा के पात्र
Answers
Answered by
9
Answer:
1. Jinhe ache swapn ni aate
2. Jujhne ki umang se vanchit hai
3. Vidhan me jo kuch hai
4. Bhagya
5. Niyati ki vidambna
Answered by
1
गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर निम्न प्रकार से लिखे गए हैं।
1. कवि किन से ईर्ष्या न करने को कहता है?
2. हमारी करूणा के पात्र वे व्यक्ति हैं जो-
3. विधान है जो निर्मम गति से चलता है पंक्ति का आशय है-
4. विधान का सामानार्थक है-
5. उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक बताइए-
- 1 . कवि उनसे ईर्ष्या न करने को कहता है जिन्हे अच्छे जीवन के स्वप्न भी नहीं आते । विकल्प ( 2 ) सही विकल्प है।
- 2.हमारी करुणा के पात्र वे व्यक्ति है जो जूझने की उमंग से वह वंचित है।
विकल्प( 3) ।
- 3. विधान है जो निर्मम गति से चलता है , पंक्ति का आशय है विधान की गति तीव्र होती है।
विकल्प (1) सही विकल्प है।
- 4. विधान का समानार्थक है भाग्य ।
सही विकल्प है विकल्प ( 2)।
- 5. उपुर्यक्त पद्यांश का शीर्षक है नियति की विडंबना ।
- उपुर्यक्त पद्यांश में कवि कहता है कि जो लोग सपने देखना भी नहीं जानते उनसे कैसी ईर्ष्या।
- जिनके जीवन में उमंग नहीं, वे करुणा में पात्र है।कवि कहते है कि हमने अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया है। जीवन को दुखी नाटक समझ कर स्वीकार किया है।
- कवि कहता है कि हम हमेशा दूसरों को ही दोष देते है। हमें अपने भाग्य को स्वीकार करना चाहिए ।
- कवि कहता है कि जो किस्मत में लिखा होता है वह होकर ही रहता है। विधान तीव्र गति से चलता है।हमें अपने जीवन के सत्य को स्वीकार करना चाहिए । अपने जीवन में उमंग रखनी चाहिए।
#SPJ2
Similar questions