निम्नालिखित पद्यानश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। अँसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बेलि बोई। अब तो बेलि फैल गई, आनंदफल होई। दूध की मथनियाँ बड़े, प्रेम से बिलोई। माखन जब काढ़ि लियो, छाछ पिए कोई। भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई। दासी'मीरा'लाल गिरिधर, तारो अब मोही।"
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जीवन परिचय-कृष्ण भक्त कवियों में मीराबाई का प्रमुख स्थान है। उनका जन्म 1498 ई० में मारवाड़ रियासत के कुड़की नामक गाँव में हुआ। इनका विवाह 12 वर्ष की आयु में चित्तौड़ के राणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज के साथ हुआ। शादी के 7-8 वर्ष बाद ही इनके पति का देहांत हो गया।
इनके मन में बचपन से ही कृष्ण-भक्ति की भावना जन्म ले चुकी थी। इसलिए वे कृष्ण को अपना आराध्य और पति मानती रहीं।
इन्होंने देश में दूर-दूर तक यात्राएँ कीं। चित्तौड़ राजघराने में अनेक कष्ट उठाने के बाद ये वापस मेड़ता आ गई। यहाँ से उन्होंने कृष्ण की लीला भूमि वृंदावन की यात्रा की। जीवन के अंतिम दिनों में वे द्वारका चली गई। माना जाता है कि वहीं रणछोड़ दास जी की मंदिर की मूर्ति में वे समाहित हो गई। इनका देहावसान 1546 ई. में माना जाता है।
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भाव-सौंदर्य- इस पद में भक्ति की चरम सीमा है। विरह के आँसुओं से मीरा ने कृष्ण-प्रेम की बेल बोयी है। अब यह बेल बड़ी हो गई है और आनंद-रूपी फल मिलने का समय आ गया है।
शिल्प-सौंदर्य-
1. ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. सांगरूपक अलंकार है-प्रेम-बेलि, आणंद-फल, असुवन जल
3. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
4. अनुप्रास अलंकार है-बलि बोयी।
5. संगीतात्मकता है