निम्न में भेद करो -
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी
(ग) एकसंकर और द्विसंकर।
Answers
(क) प्रभाविता और अप्रभाविता में भेद -
प्रभाविता :
जिन सदस्यों (F1- पीढ़ी के संकर सदस्य) में दोनों विपर्यासी रूपों के कारक साथ साथ उपस्थित होते हैं, उनमें लक्षण के केवल प्रभावी (dominant) रूप का लक्षण प्रारूप प्रकट होता है इस प्रभाव को प्रभाविता से प्रदर्शित करते है।
अप्रभाविता :
जिन सदस्यों (F1 - पीढ़ी के संकर सदस्य) में दोनों विपर्यासी रूपों के कारक साथ साथ उपस्थित होते हैं, उनमें लक्षण के अप्रभावी (recessive) रूप का लक्षण प्रारूप प्रकट नहीं होता है इस प्रभाव को अप्रभाविता से प्रदर्शित करते है।
(ख) समयुग्मजी और विषमयुग्मजी में भेद -
समयुग्मजी :
(1) एक जीन के दोनों युग्मविकल्पी एलील समान होते हैं।
(2) केवल एक ही प्रकार की युग्मक बनते हैं।
(3) स्वपरागण या अंत: प्रजनन होने पर संतति पैतृकों के समलक्षणी एवं समजीनी होती है।
विषमयुग्मजी :
(1) एक जीन के दोनों युग्मविकल्पी एलील अलग अलग होते हैं।
(2) दो अलग अलग प्रकार की युग्मक बनते हैं।
(3) स्वपरागण या अंत: प्रजनन होने पर संतति में प्रभावी दोनों विपर्यासी लक्षण व्यक्त होते है।
(ग) एकसंकर और द्विसंकर में भेद -
एकसंकर :
(1) जब एक तुलनात्मक लक्षण को ध्यान में रखकर शुद्ध जनकों में संकरण कराया जाता है तो इसे एकसंकर क्रॉस कहते हैं।
(2) प्रथम पीढ़ी की संतति में स्वपरागण कराने पर द्वितीय या F2 पीढ़ी में पौधे 3 : 1 के फीनोटिपिक अनुपात में प्राप्त होते हैं।
द्विसंकर :
(1) जब दो तुलनात्मक लक्षण को ध्यान में रखकर शुद्ध जनकों में संकरण कराया जाता है तो इसे द्विसंकर क्रॉस कहते हैं।
(2) प्रथम पीढ़ी की संतति में स्वपरागण कराने पर द्वितीय या F2 पीढ़ी में पौधे 9 : 3 : 3 : 1 के फीनोटिपिक अनुपात में प्राप्त होते हैं।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Answer:
samyugmaji vishamyugmaji