Hindi, asked by GarimaPhogatStudent, 1 year ago

निम्न में से 1 निबंध लिखिए
परमाणु शक्ति और भारत

युवा शक्ति और सामाजिक पुननिर्माण

कम्प्युटर शिक्षा मेरी दृष्टि में

Answers

Answered by AkashMandal
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युवा शक्ति और सामाजिक पुननिर्माण


महात्मा गांधी ने कहा था – मेरी आशा का केन्द्र बिन्दु है युवावर्ग । कारण स्पष्ट है – राष्ट्र का भविष्य युवावर्ग, विशेषकर छात्रों पर ही निर्भर करता है। समाज और देश की बागडोर इसी वर्ग के हाथों में होती है। भोजन में जो स्थान नमक का है, वही स्थान राष्ट्रीय जीवन में युवावर्ग का है। युवकों के शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक स्तर पर ही किसी राष्ट्र की अस्मिता और वर्चस्विता आधारित हैं। युवावर्ग राष्ट्रीय जीवन के प्राण होते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने भी युवकों का आह्वान करते हुए कहा था–

" उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत "

अर्थात् :- उठो, जागो और तबतक नही रूको जबतक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय। अब प्रशन उठता है - कैसा युवावर्ग गांधी जी की आशा का केन्द्र बिन्दु हो सकता है अथवा विवेकानन्द ने किस तरह के युवकों का आह्वान किया था ?

स्पष्ट है कि यह युवावर्गा दिग्भ्रमित, चरित्रहीन और मूढ़ नही हो सकता। आज समाज और राष्ट्र के दुर्भाग्य से युवकों का बड़ा हिस्सा पथभ्रष्ट हो गया है। रुग्ण विचारों और थोथे आदर्शों की ओट में वे अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं। तोड़-फोड़, हिंसा, हड़ताल, लड़कियों के साथ छेड़खानी, अशलील आचरण, शराब और मादक द्रव्यों का सेवन, मारपीट आदि में संलग्न नौजवान निश्चित रूप से गांधी के सपनों का केंद्र बिंदु नही थे और न अर्द्ध शिक्षित, अनुशासनहीन तथा चरित्रभ्रष्ट युवकों को ही विवेकानन्द ने– “उत्तिष्ठत जाग्रत” कहा था। निश्चित रूप से युवावर्ग राष्ट्र का कर्णाधार और भविष्य होता है, किन्तु पथभ्रष्ट, दिग्भ्रमित, चरित्रहीन युवावर्ग नही।

गांधी और विवेकानन्द के सपनों का युवावर्ग विशेषकर छात्र समुदाय को चरित्रवान और सभी दृष्टियों से सुयोग्य होना चाहिए। शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक दृष्टि से सम्पन्न युवावर्ग ही राष्ट्र के प्राण होते हैं। मात्र कुछ विषयों का ज्ञान प्राप्त कर लेना ही सच्ची शिक्षा नही है। जब तक शिक्षा और चरित्र दोनों का संयोग नही होगा, तब तक विद्यार्थी वर्ग राष्ट्र- निर्माण कार्य के योग्य नही होगे।

प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री और दार्शनिक राद्याकृष्ण के अनुसार – "चरित्र की आधारशिला पर ही राष्ट्र कभी भी महान नहीं हो सकता है, जिसके नागरिक ओछे चरित्र के हो।" बुद्धि के साथ विवेक तथा मानवीय गुणों से युक्त विधार्थी और युवावर्ग, जिन्में देश-प्रेम एंव उच्च आदर्श हो, राष्ट्र-निर्माण के यज्ञ में अपना योगदान कर सकते हैं। सत्य और न्याय के लिए कठिन-से-कठिन परिरिथीतियों का मुकाबला करने की ललक जिन नौजवानों में नही, वह सच्चे अर्थों में नौजवान कहलाने योग्य भी नही है।

देश के सामने असंख्य समस्यायें है, जो अपने समाधान के लिए नौजवानों की बाट जो रही हैं। गरीबी, अशिक्षा, तरह-तरह के अंधविश्वास और पुरानी मान्यताएँ, भ्रष्टाचार, जात-पात का भेदभाव, आतंकवाद, घर्माघता, साम्प्रदायिकता, राष्ट्र को खंडित करने वाले विघटनकारी तत्व इन सबों से जुझने के लिए विधार्थी वर्ग और युवकों को ताल ठोककर आगे आना है। हमारे संविधान ने जनतंत्र को स्वीकार कर लिया है, किन्तु अब तक भी क्या सामाजिक न्याय और समान अधिकार को व्यावहारिक रूप दिया जा सका है ? तथाकथित उच्च जाति के लोगों का अस्पृष्यों के साथ व्यवहार में कोई विशेष परिवर्तन आज भी न आ पाया है। स्त्रियों को क्या पुरूषों के समान आदर-सम्मान मिल रहा है। क्या आज भी लड़की होना अभिशाप नही माना जाता है ? इतने सारे सवाल जवाब के लिए तरस रहे हैं। कौन देगा जवाब ?

निश्चित रूप से युवावर्ग-चरित्र वान, गुणसम्पन्न और राष्ट्र सेवा के लिए प्रतिबद्ध युवा वर्ग-ही जवाब देगा।

इसमें संदेह नही है कि अब समय आ गया है जबकि भारत के नौजवान, चाहे वे जिस वर्ग के हो, अपने ऐतिहासिक दायित्व का पालन करेंगे और भारत का मस्तक ऊँचा करके ही रहेंगे। युवाशक्ति के सामने सारे बाधा विध्न ध्वस्त हो जायेंगे।

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yoyoa6275: That's a Great Essay!
AkashMandal: Thank you ...
GarimaPhogatStudent: ok
Anonymous: Awesome answer bhai
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