Geography, asked by znjsjdnxksk, 3 months ago

निम्न में से किस राज्य में आरा वारी पानी संसद कार्यक्रम चलाया जा रहा है​

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Answered by deepbukkal
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इस मुदे पर देश के विद्वानों और पढ़े लिखे लोगों की राय जानने के लिए अरवरी नदी के किनारे बसे हमीरपुर गांव में 19 दिसम्बर, 1998 को जन सुनवाई कराने का फैसला हुआ। इस सुनवाई में विश्व जल आयोग के तत्कालीन आयुक्त अनिल अग्रवाल, राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव एम. एल. मेहता, हिमाचल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गुलाब गुप्ता, राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति टी. के. उन्नीकृष्णन, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के तत्कालीन सचिव एस. रिजवी जैसे अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।

तरूण भारत संघ के अरूण तिवारी कहते हैं कि इस जन सुनवाई में मुदई, गवाह, वकील, जज, विचारक, नियंता सब मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता जस्टिस गुलाब गुप्ता ने की। गांव वालों ने अपनी बेबाक राय जाहिर की और बाहर से आए लोगों को ध्यान से सुना।

अनिल अग्रवाल ने जन सुनवाई के दौरान कहा कि “सरकार नदी, प्रकृति और समाज के हित में कानून बनाए, न बनाएं, अरवरी नदी और उसके किनारे के 70 गांव का समाज यदि जीवंत और टिकाऊ बना रहना चाहता है, तो वह पानी-प्रकृति के उपयोग और नित्य जीवन में संयम के अपने कानून बनाए और खुद ही उनका पालन करे। नदी और उसका पर्यावरण हमारी जीवनरेखा है। हमें इन्हें बचाए रखना है।

इन्हें बचाने के लिए नेताओं वाली संसद की ओर ताकना छोड़कर अरवरी तट के 70 गांव मिलकर अपनी जल संसद का गठन करें। हर गांव से आबादी के अनुसार सांसद चुनें। यह सर्वसम्मति से हो। स्थानीय ग्राम सभाएं तथा अरवरी संसद मिलकर आम सहमति से इसके लिए कानून-दस्तूर बनाएं। उसी के अनुसार अरवरी का जल प्रबंधन व संवर्धन हो। जल संसद के निर्णय सर्वसम्मत व सर्वमान्य हों। ध्यान रहे कि संसदीय व्यवस्था, इन निर्णयों का पालन सुनिश्चित करने की ही व्यवस्था है। ऐसे में समाज तो अरवरी संसद के कानूनों व दस्तूरों का पालन करेगा ही, एक दिन सरकार को भी इनका पालन करना पड़ेगा।” बैठक में मौजूद बहुत सारे लोगों ने अपनी बात कही।

कार्यक्रम के अध्यक्ष जस्टिस गुलाब गुप्ता ने जन सुनवाई के दौरान अपने फैसले में कहा कि-

“जहां तक पानी पर अधिकार की बात है, अधिकार मांगना गांव वालों का हक तो हो सकता है पर ऐसा कानून नहीं है। कानूनी हिसाब से गांव वालों की मांग नाजायज है। इस तरह तो कोई भी व्यक्ति या संस्था जमीन और पानी का संरक्षण करके हक मांग सकती हैं; लेकिन वर्तमान कानूनों के तहत उन्हें इसका हक नहीं दिया जा सकता।”

अरवरी संसद

तरूण भारत संघ के अरूण तिवारी कहते हैं कि भारतीय कानून की किताब इसे नाजायज मानती है, लेकिन क्या नीति और लोकतंत्र का वह आधार भी इसे गलत मानता है, जिस पर भारतीय गणतंत्र की स्थापना हुई है। इसलिए जन सुनवाई के दौरान राय बनी कि कानून और सरकार कुछ भी कहें, पर नीति यही कहती है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। अतः पहले उसी का हक है। पहले वही उपभोग करे, उसी का मालिकाना हक हो। सरकार और कानून को चाहिए कि वह भी इसी नीति का अनुसरण करे। इसे प्राथमिकता दे। इंसान कानून बनाता है न कि कानून इंसान को। अतः ऐसे खिलाफ कानून जो समाज हितैषी नहीं हों, उन्हें बदल डालें। आखिर हम सरकारों को भी तो बदलते रहते हैं।

अरुण तिवारी द्वारा अरवरी संसद पर सम्पादित पुस्तक के पेज 23 पर लिखा है कि गांव, समाज, अतिथि और जन सुनवाई के निर्णायक जस्टिस गुलाब गुप्ता आदि सभी ने मिलकर औपचारिक या अनौपचारिक तौर पर अरवरी नदी संसद के गठन पर अपनी मोहर लगा दी। यह निर्णय गांव वालों के लिए रामबाण बन गया और उनका बचाखुचा संदेह मिट गया, उन्हें पता चल गया कि वे सही हैं क्योंकि इतने नामी-गिरामी लोगों की मौजूदगी में आम सहमति से संसद बनाने का फैसला हुआ है। गांव वालों के पास अहिंसा और संयम की शक्ति पहले ही थी; अब नया उत्साह था नया रास्ता! नया सपना !!

26 जनवरी 1999, मंगलवार को सबेरे 11 बजे प्रसिद्ध गांधीवादी सर्वोदयी नेता सिद्धराज ढड्ढा, की अध्यक्षता में हमीरपुर गांव में संकल्प ग्रहण समारोह आयोजित हुआ और 70 गांवों की अरवरी संसद अस्तित्व में आई। सब लोग समझ रहे थे और अनुभव भी कर रहे थे कि अरवरी संसद, हकीकत में एक जिंदा नदी की जीवंत संसद है। इसलिए नदी है तो संसद है, यदि नहीं, तो संसद भी नहीं। उन्होंने अपनी संसद के निम्नानुसार उद्देश्य तय किए-

1. प्राकृतिक संसाधनों का संवर्धन करनाा

2. समाज की सहजता को तोड़े बिना अन्याय का प्रतिकार करना

3. समाज में स्वाभिमान, अनुशासन, निर्भयता, रचनात्मकता तथा दायित्वपूर्ण व्यवहार के संस्कारों को मजबूत करना

4. स्वावलम्बी समाज की रचना के लिए आवश्यक विचार-बिंदुओं को लोगों के बीच ले जाना

5. निर्णय प्रक्रिया में समाज के अंतिम व्यक्ति की भागीदारी सुनिश्चित करना

6. ग्राम सभा की दायित्वपूर्ति में संसद सहयोगी की भूमिका अदा करेगी, लेकिन जहां ग्रामसभा तमाम प्रयासों के बावजूद निष्क्रिय ही बनी रहेगी वहां संसद स्वयं पहल करेगी।

अरवरी जल संसद की कहानी, राजस्थान के एक पिछड़े इलाके में कम पढ़े लिखे संगठित लोगों द्वारा अपने प्रयासों एवं संकल्पों की ताकत से लिखी कहानी है। इस कहानी में देश में लागू जलनीति और समाज की अपेक्षाओं का यदि टकराव दिखता है तो यह कहानी काफी हद तक समाज और पानी के योग क्षेम की जीवंत कहानी भी है। यह कहानी प्रकृति के पुनर्वास, लाभप्रद खेती और आजीविका का बीमा और सरकारों तथा प्रबंधकों के लिए लाइटहाउस भी है। तकनीकी और जनतांत्रिक संगठनों के लिए इसमें सीखने के लिए बहुत कुछ है।

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