निम्िनिनित शब्दों में उचित स्थयि पर अिुस्र्यर िगयकर मयिक रूप निखिए|
1.पतङग
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पयांश क्र. १ : (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. २५) धरती का आँगन महके कर्मज्ञान-विज्ञान से। ऐसी सरिता करो प्रवाहित खिले खेत सब धान से ।। अभिलाषाएँ नित मुसकाएँ आशाओं की छाँह में, पैरों की गति बँधी हुई हो विश्वासों की राह में। शिल्पकला-कुमुदों की माला वक्षस्थल का हार हो, फूल-फलों से हरी-भरी धरती का शृंगार हो ।
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