निम्न पंक्तियों में रस का नाम बताइए - 1. रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़उर में दशरथ के। ग्लानि, त्रास, वेदना - विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।। 2. मन रे तन कागद का पुतला | लागे बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करें क्या इतना || 3.देखि रूप लोचन ललचाने। हरखे जनु निज निधि पहिचाने।।थके नयन रघुपति-छवि देखी। पलकन हू परहरी निमेखी।। 4.कहाँ कमध कहाँ मथ्थ कहाँ कर चरन अंत रूरि। कहाँ कध वहि तेग, कहौं सिर जुट्टि फुट्टि उर। 5.राम जपु राम जपु राम बावरे। घोर भव नीर निधि नाम निज नाव रे।। (तुलसी) *
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Ras in Hindi: काव्य सौंदर्य के तत्वों में रस बहुत महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं यदि किसी कविता में रस ना हो तो वह व्यर्थ है, प्रस्तुत लेख में रस की परिभाषा, रस के प्रकार एवं रस के उदाहरण (what is ras in Hindi, Types of ras in Hindi and Example of Ras in Hindi) अच्छे से संक्षिप्त रूप में दिए हैं.
जिस प्रकार स्त्री की शोभा गहने बढ़ाते हैं उसी प्रकार कविता की सुंदरता और शोभा रस बढ़ाते हुए. तो आइए रस (Ras in Hindi grammar) के बारे में विस्तारपूर्वक पढ़ते हैं.
Ras in Hindi by Multi-knowledge.com
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श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस के जिस भाव से यह अनुभूति होती है कि वह रस है उसे स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अव्यय हैं।
रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।
रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है।[1]
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