निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखो-
(क)
तिनकों को बहलाने का काम कौन करता है।
(ख) रिंकू ने अखबार में क्या पढ़ा?
'ग) प्रदूषण कम करने का एक सुझाव दो।
पक्षियों के क्या उग गए
हैं?
बादल ने चिड़े की चोंच में किसके सात रंग भरे?
38 अंतरा-4
Answers
Answer:
'ग) प्रदूषण कम करने का एक सुझाव दो।
'ग) प्रदूषण कम करने का एक सुझाव दो।पक्षियों के क्या उग गए हैं?
प्रदूषण एक समस्या प्रस्तावना : विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।
प्रदूषण का अर्थ : प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना।
प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ।
वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।
ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।
प्रदूषण के कारण : प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
सुधार के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।
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प्रदूषण से पक्षी भी परेशान, प्रजनन क्षमता हो रही प्रभावित
By - Diti BajpaiUpdate: 2019-12-11 10:53 GMT
प्रदूषण से पक्षी भी परेशान, प्रजनन क्षमता हो रही प्रभावित
"उस समय को याद कीजिए जब एक तार में लाइन से चिड़ियां बैठती थीं, घरों में पक्षियों के घोसलें दिखते थे, जब पक्षियों का झुंड एक साथ उड़ता था, चील के उड़ने पर बरसात का अंदाजा लगाया जाता था। अब यह सब न के बराबर है और इन सबके खत्म होने का कारण है प्रदूषण, चाहे वो वायु हो, जल हो या फिर ध्वनि।", पक्षी विशेषज्ञ और भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) में पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ रिशेंद्र वर्मा अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताते हैं।
डॉ रिशेंद्र पिछले कई वर्षों से लगातार घट रही पक्षियों की संख्या पर शोध कर रहे हैं। "जैसे इंसानों को प्रदूषण के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है उससे कहीं ज्यादा पक्षियों को सांस लेने में दिक्कत होती है क्योंकि पक्षियों की श्वसन प्रक्रिया इंसानों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा होती है। प्रदूषण के कण उनके अंदर पहुंचते हैं जो भविष्य में उनकी मौत का कारण बनते हैं।", डॉ. रिशेंद्र वर्मा बताते हैं।
वह आगे कहते हैं, "दिल्ली का इंडिया गेट एक बड़ा उदाहरण है। वहां एक समय में कबूतरों की संख्या काफी थी जो धीरे-धीरे कम हो रही है। ऐसे गौरैयों की संख्या में भी कमी आई है।"
नॉर्थ अमेरिका ब्रीडिंग बर्ड सर्वे के मुताबिक पिछले 50 वर्षों में गौरैयों की संख्या 82 प्रतिशत तक कम हो चुकी है। शहरों में बढ़ता हुआ प्रदूषण गौरैयों के जीवन के लिए सबसे बड़ा संकट है।
विश्व के सभी देशों में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। पृथ्वी पर संतुलन बनाने के लिए जीव-जंतु, पेड़-पौधें, जल और इंसानों आदि का एक संतुलित संख्या में होना बेहद जरूरी है। इन सभी के संतुलन से ही पृथ्वी पर जीवनचक्र बना रहता है लेकिन बढ़ते प्रदूषण से हम जो सांस लेते हैं, खाना खाते हैं, पानी पीते हैं, उन सभी में किसी न किसी प्रकार से प्रदूषण के कण हमारे अंदर तो आते ही हैं। इसके साथ ही पशु-पक्षियों का भी अस्तित्व संकट में है।
डॉ. रिशेद्र अपने अनुभवों के बारे में गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "पेस्टीसाइड के अंधाधुंध इस्तेमाल से कीड़े-मकौड़े खत्म हो रहे हैं जो कि पक्षियों का पारम्परिक आहार हैं। पक्षियों को आहार न मिलने पर वह विस्थापन करते हैं, आहार की कमी उनकी मौत की वजह बनती है।" कई बार ये पक्षी जहां विस्थापित होकर जाते हैं वहां भी कमोबेश वहीं हालात होते हैं, लगातार की ये प्रक्रिया उनकी संख्या घटने का कारक बनती है।
सर्दियां शुरू होने से पहले हजारों किलोमीटर का सफर तय करके भारत में प्रवासी पक्षी अपना डेरा जमाते हैं लेकिन जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और सर्दियों में तापमान ज्यादा न गिरने के चलते इन प्रवासी पक्षियों की संख्या में आई कमी बेहद चिंताजनक है।
आगरा के राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में वन संरक्षण अधिकारी आनंद कुमार बताते हैं, "नवंबर में प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है लेकिन सर्दी देर से शुरू होने के कारण इनकी संख्या अब धीरे-धीरे बढ़ रही है।"
द यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में नगर निकाय, खेती और औद्योगिक क्षेत्र से निकलने वाले अपशिष्ट से सबसे ज्यादा जल प्रदूषण होता है। खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक (पेस्टीसाइड), शहरों से निकलने वाला प्लास्टिक कूड़ा और औद्योगिक क्षेत्र का कचरा नदियों, झीलों और तालाबों में जाता है, जिससे पक्षियों को बीमारियां होती है साथ ही उनकी मौत भी हो जाती है। इससे धीरे-धीरे पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जल प्रदूषण के कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, जिससे मछलियां मर जाती हैं। पक्षियों का आहार मछलियां हैं जब वो उनको पानी में नहीं मिलती हैं तो उनको भोजन के लिए अन्य क्षेत्रों में जाना पड़ता है, जिससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले प्रवासी पक्षी विशेषज्ञ शरद पुरोहित बताते हैं, "झीलों, तालाबों और सरोवर का संतुलन बनाने के लिए प्रवासी पक्षियों का आना बेहद जरुरी है। अकेले जोधपुर में 13 वेटलैंड (नमी वाली भूमि) हैं जहां पर प्रवासी पक्षी आते हैं। लेकिन अब हर साल इनकी संख्या घट रही है, जिसके दो प्रमुख कारण है। पहला प्रदूषण के कारण उनका खत्म हो रहा भोजन और दूसरा जलवायु परिवर्तन।"
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