निम्न पद्यांश की संदर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अंहकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की
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संदर्भ :- 'वाख' का अर्थ होता है वाणी। यह चार पंक्तियों में लिखते है है। यह कश्मीरी शैली का एक उदाहरण है और इसे गाया भी जा सकता है। यह पद्यांश "वाख" से लिया गया हैं इसकी कवयित्री ललद्यद्य है जो एक कश्मीरी कवयित्री है | इन पंक्तियों में कवयित्री ने भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाये रखने की बात कही हैं |
भावार्थ/व्याख्या - कवयित्री ने यहाँ पर साधक को अति भोग विलास से बचने के लिए आगाह किया है क्योंकि विलासी व्यक्ति का मन साधना में नहीं लग पाएगा | इसका तात्पर्य यह नहीं हैं कि हम एकदम विरक्त जीवन जिए यदि ऐसा करेंगे तो हमें त्याग का अहंकार यानी घमंड हो जाएगा | तदर्थ हमें समत्व बुद्धि रखकर मध्यम मार्ग में स्थित रहना चाहिए इसीसे परमात्मा प्राप्ति के साधना पथ के द्वार खुलेंगे |
विशेष : उपरोक्त पंक्तियों के माध्यम से अत्यंत गूढ़ बात कह दी गयी हैं |