निम्नलिखित अपठित पद्याश को पढ़कर निचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
धन-बल से हो जहाँ न जन-श्रम शोषण,
परित भव-जीवन के निखिल प्रयोजन।
जहाँ दैन्य जर्जर, अभाव ज्वर पीडित,
जीवन यापन हो न मनुज को गहित
युग-युग के छायाभासों से त्रासित
मानव के प्रति मानव मन हो न सशंकित।
मुक्त जहाँ मन की गति, जीवन में रति,
भव-मानवता से जन - जीवन परिणति
संस्कृति वाणी, भाव, कर्म, संस्कृत मन,
सुन्दर हो जन वास, वसन सुन्दर तन।
ऐसा स्वर्ग धरा पर हो समुपस्थित,
नव मानव-संस्कृति किरणों से ज्योतित।
(i) उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) 'सशंकित' पद में उपसर्ग व प्रत्यय बताइए।
जगत का जीवन किसमें परिणत होवे?
(iv) मानव मन पाय किससे सशंकित रहता है?
(v) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने रथा कामना व्यक्त की है?
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Answer- 1) जीवन - मानव के लिए
2) संश- उपसर्ग
इत - प्रत्यय
3)जगत का जीवन संस्कृति वाणी
मैं परिणित है I
4) मानव मन प्राय देन्य जर्जर , अभाव पीड़ित और जीवन यापन के लिए सनशंकित रहता है I
5) कवि ने जीवन के बारे में यथा कामना की है I
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