Hindi, asked by vinayrockzz3303, 1 year ago

निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर उनपर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
पृथ्वी और आकाश के अन्तराल में जो कुछ सामग्री भरी है, पृथ्वी के चारों ओर फैले हुए गम्भीर सागर में जो जलचर एवं रत्नों की राशियाँ हैं, उन सबके प्रति चेतना और स्वागत के नए भाव राष्ट्र में फैलने चाहिए । राष्ट्र के नवयुवकों के हृदय में उन सबके प्रति जिज्ञासा की नई किरणें जब तक नहीं फूटतीं तब तक हम सोए हुए के समान हैं। विज्ञान और उद्यम दोनों को मिलाकर राष्ट्र के भौतिक स्वरूप का एक नया ठाट खड़ा करना है। यह कार्य प्रसन्नता, उत्साह और अथक परिश्रम के द्वारा नित्य आगे बढ़ाना चाहिए। हमारा यह ध्येय हो कि राष्ट्र में जितने हाथ हैं, उनमें से कोई भी इस कार्य में भाग लिए बिना रीता न रहे। तभी मातृभूमि की पुष्कल समृद्धि और समग्र रूपमण्डन प्राप्त किया जा सकता है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) राष्ट्रीय चेतना में भौतिक ज्ञान-विज्ञान के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
(ii) लेखक ने राष्ट्र की सुप्त अवस्था कब तक स्वीकार की है?
(iii) विज्ञान और श्रम के रांयोग रो राष्ट् प्रगति के पथ पर कैसे अग्रसर हो सकता है?
(iv) लेखक के अनुसार, राष्ट्र समृद्धि का उद्देश्य कब पूर्ण नहीं हो पाएगा?
(v) 'स्वागत' का सन्धि विच्छेद करते हुए उसका भेद बताइए।

Answers

Answered by vikasbarman272
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गद्यांश के प्रश्न - उत्तर :

उत्तर (i) : लेखक के अनुसार राष्ट्रीयता की भावना न केवल भावनात्मक स्तर पर होनी चाहिए, बल्कि भौतिक ज्ञान के प्रति जागृति के स्तर पर भी होनी चाहिए, क्योंकि पृथ्वी और आकाश के बीच विद्यमान नक्षत्रों, जलीय जंतुओं में समुद्र, खनिजों और रत्नों आदि का ज्ञान, भौतिक ज्ञान-विज्ञान राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक है।

उत्तर (ii) : युवाओं में राष्ट्रीय चेतना और भौतिक ज्ञान-विज्ञान के प्रति जिज्ञासा विकसित होने तक लेखक ने राष्ट्र की सुप्त अवस्था को स्वीकार किया है। जब तक देश का युवा जिज्ञासु और जागरूक नहीं होगा, तब तक देश को सुषुप्तावस्था में मानना चाहिए।

उत्तर (iii): लेखक के अनुसार विज्ञान और परिश्रम दोनों को एक साथ काम करना चाहिए, तभी किसी राष्ट्र का भौतिक स्वरूप उन्नत हो सकता है, अर्थात् विज्ञान का विकास इस प्रकार होना चाहिए कि वह राष्ट्र को हानि न पहुँचाए। श्रमिकों और उनके काम और दक्षता में वृद्धि। यह काम बिना किसी दबाव और सहमति के होना चाहिए। इस प्रकार कोई भी राष्ट्र प्रगति कर सकता है।

उत्तर (iv) : लेखक के अनुसार, राष्ट्र की समृद्धि का उद्देश्य तब तक पूरा नहीं होगा जब तक देश का कोई भी नागरिक बेरोजगार है, क्योंकि राष्ट्र का निर्माण प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किया जाता है। यदि एक भी व्यक्ति को रोजगार नहीं मिला तो देश की प्रगति अवरूद्ध हो जायेगी।

उत्तर (v) : सु + आगत = स्वागत (यण् संधि)

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