निम्नलिखित गाधांश की सप्रसग व्याख्या किजीए वैर क्रोध का
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वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। जिससे हमें दु:ख पहुँचा है उसपर यदि हमने क्रोध किया और यह क्रोध हमारे हृदय में बहुत दिनों तक टिका रहा तो वह वैर कहलाता है। इस स्थायी रूप में टिक जाने के कारण क्रोध का वेग और उग्रता तो धीमी पड़ जाती है; पर लक्ष्य को पीड़ित करने की प्रेरणा बराबर बहुत काल तक हुआ करती है।
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