निम्नलिखित गघांश के सप्रसंग व्याख्या किजिए वैर क्रोध
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क्रोध' मनोविकार सम्बन्धी निबन्ध रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित है | विषय की दृष्टि से ऐसे निबन्ध मनोविग्यान की सीमा मे आते है लेकिन शुक्लजी ने उसे साहित्यिक निबन्ध बना दिया है | जिसका कारण है उनका जीवन अनुभव | क्रोध क्यो उत्पन्न होता है, दुख और क्रोध मे क्या सम्बन्ध है, सामाजिक जीवन मे क्रोध का क्या महत्व है, क्रोधी की मानसिकता-जैसै समबन्धित पेहलुओ का विश्लेश्ण करते जाते है जिस्से उनके जीवन के सूक्ष्म निरीक्षण का पता चलता है | "वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है |" जैसे वाक्य मनोवैग्यानिक नही, साहित्यकार ही कह सकता है |
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