निम्नलिखित गणेश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
अंक
महात्माओं और विद्वानों का सबसे बड़ा लक्षण है-आवाज़ को ध्यान से सुनना। यह आवार कुछ भी हो सकती है। कौओं की
ककश आवाज से लेकर नदियों की छलछल तक। मार्टिन लूथर किंग के भाषण से लेकर किसी पागल के बड़बड़ाने तक। अमूमन ऐसा
होता नहीं। सच यह है कि हम सुनना चाहते हो नहीं । बस बोलना चाहते हैं। हमें तपता है कि इससे लोग हमें बेहतर तरीके से समझेंगे।
हालांकि ऐसा होता नहीं। हमें पता ही नहीं चलता और अधिक बोलने की कला हमें अनसुना करने की कला में पारंगत कर देती है। एक
मनोवैज्ञानिक ने अपने अध्ययन में पाया कि जिन घरों के अभिभावक दादा बोलते हैं, वहाँ बच्चों में सही-गलत से जुड़ा स्वाभाविक ज्ञान
कम विकसित हो पाता है, क्योंकि ज्यादा बोलग बातों को विरोधाभासी तरीके से सामने रखता है और सामने वाला बस शोके
जाल
में मकर रह जाता है। बात औपचारिक हो या अनौपचारिक दोनों स्थितियों में हम दूसरे को न सुन, बस हावी होने की कोशिश करते
हैं। बुददा बोलने और दूसरों को अनसुना करने से जाहिर होता है कि हम अपने बारे में ज्यादा सोचते है और दूसरों के बारे में कम।
ज्यादा बोलने वालों के दुश्मनों को भी संख्या ज्यादा होती है। अगर आप नए दुश्मन बनाना चाहते हैं, तो अपने दोस्तों से ज्यादा बोलें और
अगर आपनर दोस्त बनाना चाहते हैं, तो दुश्मनों से कम बोलें। अमेरिका के सर्वाधिक चर्चित राष्ट्रपति रूजवेट अपने माली तक के साथ
कुछ समय बिताते और इस दौरान उनकी बातें ज्यादा सुनने की कोशिश करते। वह कहते थे कि लोगों को अनसुना करना अपनी लोकप्रियता
के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। इसका लाभ यह मिला कि ज्यादातर अमेरिकी नागरिक उनके सुख में सुखी होते, और दुख में दुखी।
(क) अनसुना करने की कला ब्यों बिकसित होती है?
(ख) अधिक बोलने वाले अभिभावकों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?
(ग) अधिक बोलना किन बातों का सूचक है?
(घ) सजवेल्ट की लोकप्रियता का क्या कारण बताया गया है।
(3 उपर्युन गद्यांश के लिए उचित शीर्षक दीजिए।
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