निम्नलिखित गद्यांश को पढकर दिए गए प्रश्नों के उत्तर
लिखिए-
जब मनुष्य सोया रहता है, वह कलयुग में होता है। जब वह बैठ जाता
है, तब द्वापर में होता है। जब उठ खड़ा होता है, तब त्रेता युग में
होता है और जब चलने लगता है, तो सतयुग में पहुँच जाता है, इसलिए
बार-बार कहा गया है कि चलते रहो। जीवन चलने और आगे बढ़ने
का नाम है। पर्यटन भी तो चलने, निरंतर आगे बढ़ने और नित नई खोज
करने की प्रक्रिया है, इसलिए कह सकते हैं कि पर्यटन जीवन है।
पर्यटन ही विकास है।
पर्यटन जहाँ खुद के विकास के संबंध- एक जरुरी कार्य है वहीं
अपनी क्षमता का मूल्यांकन करने और अपनी क्षमता को विकसित
करने का साधन या माध्यम भी है। भौतिक, आध्यात्मिक तथा
मानसिक-इन तीनों के विकास का मार्ग व साधन है- पर्यटन।
अब सवाल है कि पर्यटन अर्थात देश-देशांतर का भ्रमण सतयुग
के समान क्यों है। हम सतयुग उस काल को मानते हैं-जहाँ सत्य और
जीवन की रक्षा के लिए सभी क्रियाएँ होती हैं। यह धारणा भी है कि
चलना अर्थात कुछ करना ही जीवन हैं। इन अर्थों में पर्यटन की क्रिया
सतयुग की क्रिया कहला सकती है, पर पर्यटन में सात्विकता का
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No hindi
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sorry.
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