निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुज़रे । कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।... क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।... और कैप्टन मर गया। सोचा आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे।
(क) बार-बार सोचने वाला कौन है? वह किस कौम के बारे में क्या सोच रहा है?
(ख) “अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है'- कथन का निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) आज उस कस्बे में न रुकने और पान भी न खाने के पीछे क्या कारण था?
Answers
✫ANswer :
(क) बार-बार सोचने वाला कौन है? वह किस कौम के बारे में क्या सोच रहा है?
➳ बार-बार सोचने वाले हालदार साहब थे। वे उस कौम के लोगों के बारे में सोच रहे थे, जिनके मन में आज शहीदों के प्रति सम्मान की भावना एवं देशभक्ति का गौरव समाप्त हो गया है। जो स्वार्थी हो गए हैं और अवसरवादिता के पक्षधर बनते जा रहे हैं।
(ख) “अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है'- कथन का निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
➳ अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है' - पंक्ति के द्वारा हालदार साहब उन लोगों के बारे में सोचकर दुखी हो रहे हैं, जिनमें देशभक्ति की भावना कम हो गई है। जो उन लोगों पर उपहास करते हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया। ऐसे लोग स्वार्थ को अधिक महत्त्व देने लगे हैं और स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी संपूर्ण मर्यादा त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे उन देशभक्तों को भूल गए हैं जिन्होंने देश की खातिर अपना घर-परिवार, जवानी, जिंदगी सब बलिदान कर दी थी।
(ग) आज उस कस्बे में न रुकने और पान भी न खाने के पीछे क्या कारण था?
➳ हालदार साहब उस कस्बे में रुकना नहीं चाहते थे और पान भी नहीं खाना चाहते थे क्योंकि वे सोच रहे थे कि इस कस्बे के चौराहे पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा तो होगी, परंतु आज उस मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला मास्टर सुभाष चंद्र बोस का चश्मा बनाना भूल गया था और प्रतिदिन मूर्ति पर नया चश्मा बदलने वाला कैप्टन मर गया था।
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Answer:
(क) बार-बार सोचने वाले हालदार साहब थे। वे उस कौम के लोगों के बारे में सोच रहे थे, जिनके मन में आज शहीदों के प्रति सम्मान की भावना एवं देशभक्ति का गौरव समाप्त हो गया है। जो स्वार्थी हो गए हैं और अवसरवादिता के पक्षधर बनते जा रहे हैं।
(ख) अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है' - पंक्ति के द्वारा हालदार साहब उन लोगों के बारे में सोचकर दुखी हो रहे हैं, जिनमें देशभक्ति की भावना कम हो गई है। जो उन लोगों पर उपहास करते हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के लिए बलिदान कर दिया। ऐसे लोग स्वार्थ को अधिक महत्त्व देने लगे हैं और स्वार्थ के वशीभूत होकर अपनी संपूर्ण मर्यादा त्यागने के लिए तत्पर हैं। वे उन देशभक्तों को भूल गए हैं जिन्होंने देश की खातिर अपना घर-परिवार, जवानी, जिंदगी सब बलिदान कर दी थी।
(ग) हालदार साहब उस कस्बे में रुकना नहीं चाहते थे और पान भी नहीं खाना चाहते थे क्योंकि वे सोच रहे थे कि इस कस्बे के चौराहे पर सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा तो होगी, परंतु आज उस मूर्ति पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि मूर्ति बनाने वाला मास्टर सुभाष चंद्र बोस का चश्मा बनाना भूल गया था और प्रतिदिन मूर्ति पर नया चश्मा बदलने वाला कैप्टन मर गया था।