निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर उचित विकल्प चुन कर दीजिए। ( question 6 to 10) बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखा गया जिस दिन उनका बेटा मरा। इकलौता बेटा था वह! कुछ सुस्त और बोदा-सा था, किंतु इसी कारण बालगोबिन भगत उसे और भी मानते। उनकी समझ में ऐसे आदमियों पर ही ज्यादा नजर रखनी चाहिए, क्योंकि ये निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते है।बड़ी साध से उसकी शादी कराई थी पर तो बड़ी सुभग और सुशील मिली थी । घर की पूरी प्रबंधिका बनकर भगत की बहुत कुछ दुनियादारी से निवृत कर दिया था उसने। उनका बेटा बीमार है, इसकी खबर रखने के लोगों को कहां फुर्सत। किंतु मौत तो अपनी ओर ध्यान खींच कर रहती है ।हमने सुना, बालगोबिन भगत का बेटा मर गया। कुतूहलवश उनके घर गया। देखकर दंग रह गया। बेटे को आंगन में एक चटाई पर लिटा कर एक सफेद कपड़े से ढाँक रखा है । वह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपते रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उसपर बिखरा दिए है, फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है।और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं वही पुराना सर वही पुरानी तल्लीनता। घर में पतोहू रो रही है! जिसे गांव की स्त्रियां चुप कराने की कोशिश कर रही हैं किंतु बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं! गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नजदीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहीनी अपने प्रेमी से जा मिली,भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए । किंतु नहीं, वह जो कुछ कर रहे थे उसमें उनका विश्वास बोल रहा था - वह चरम विश्वास जो हमेशा ही मृत्यु पर विजय होता आया है। 6. प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ का है ?
A. लखनवी अंदाज
B. बालगोबिन भगत
C. मानवीय करुणा की दिव्य चमक
D. नेताजी का चश्मा.
E. Other
Answers
¿ प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ का है ?
A. लखनवी अंदाज B. बालगोबिन भगत
C. मानवीय करुणा की दिव्य चमक
D. नेताजी का चश्मा. E. Other
➲ ‘बालगोबिन भगत’ पाठ का।
✎... प्रस्तुत पाठ ‘बालगोबिन भगत’ पाठ रामवृक्ष बेनीपुरी द्वारा लिखित एक ऐसा पाठ है, जिसमें एक ऐसे व्यक्ति बाल गोबिन भगत के बारे मे वर्णन किया गया है, जो समाज की लीक से अलग हटकर चलते थे। बालगोबिन भगत कबीर को अपना गुरु मानते थे और उन्होंने कबीर की शिक्षा और आदर्शों को अपने जीवन में अपनाया था।
बाल गोविंद भगत 60 वर्ष से ऊपर की आयु के एक व्यक्ति थे। बालगोबिन भगत की कबीर में अगाध श्रद्धा थी। वह कबीर को साहब कहते थे और कबीर के दिए गए उपदेशों और निर्देशों का श्रद्धापूर्वक पालन करते थे। वह कबीरपंथी टोपी पहनते थे, जो कनपटी तक जाती थी। वह कबीर की तरह ही भगवान के निराकार रूप को मानते थे। वह कबीर द्वारा रचित पदों को ही गाते थे। कबीर की भांति वह मृत्यु को दुख नहीं आनंद का अवसर मानते थे। कबीर ने आत्मा को परमात्मा की प्रेमिका कहा है, जो मृत्यु के बाद अपने प्रियतम यानि परमात्मा से मिल जाती है, मृत्यु दुख नही आनंद का अवसर है। इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु पर उसके शरीर को फूलों से सजाया और पास में दीपक जलाया उन्होंने अपनी बहू को भी रोने से मना कर दिया और दुख नही आनंद मनाने को कहा।
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स्पष्ट कीजिए।
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‘बालगोबिन भगत’ पाठ में किन सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार किया गया है?
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