निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए
आज भावनाओं से संबंध रखनेवाली संस्कृति का मान नहीं रह गया। आजकल केवल उपभोक्ता संस्कृति का महत्व बढ़ गया है। इसके प्रभाव से आज मनुष्य और इसकी भावना को भी एक चीज, एक वस्तु मान लिया गया है, जिसे कुछ पैसे देकर कोई भी खरीद सकता है। उस तरह की मानसिकता निरंतर बढ़ती जा रही है। ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता का कोई महत्व नहीं रह गया। यदि कोई व्यक्ति ईमानदार रहकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है तो उसकी कीमत जानने की कोशिश की जाती है। कीमत देकर या लोभ-लालच देकर उसे भ्रष्ट कर दिया जाता है। सरकारी विभागों में यदि कभी भूल से कोई नियमानुसार कार्य करने वाला व्यक्ति आ जाता है तो भ्रष्टाचारी लोगों को कहते हुए सुना जाता है कि उसकी कीमत जानने की कोशिश करो या उसकी अधिक से अधिक कीमत लगाकर देखो, हर आदमी खरीदा जा सकता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस रुपयावादी या धनवादी दृष्टि ने व्यक्ति के धर्म-ईमान, कर्तव्यपराण्ता आदि सब कुछ को निगल लिया है। सारी मानवता, मानवता की सारी व्यवस्थाओं को भ्रष्ट करके भीतर से खोखला और खाली बना दिया गया है। आज जो चारों ओर भ्रष्टाचार व काला बाज़ार का धंधा निरंत पनपता जा रहा है, उसका वास्तविक कारण रुपया है। रुपया पाने के लिए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और स्वाभिमान को बेचता है। धन मानवता के निरंतर पतन का कारण बनता जा रहा है। कभी जिस रुपये-पैसे को हाथों का मैल समझा जाना था, आज वह सबकी आँखो का अंजन और तारा बन गया है। इसे मानवता के विकास के लिए शुभ नहीं माना जा सकता।
(क) आजकल किसका महत्व बढ़ गया है और उसका क्या प्रभाव पड़ा है? (ख) ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया जाता है? (ग) सरकारी विभाग में कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के बारे में क्या कहा जाता है? (घ) धनवादी दृष्टि ने व्यक्ति को कैसा बना दिया है?
(ङ) उपरोक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए तथा गद्यांश से निहित संदेश लिखिए
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i don't speak that lenguaje
FR☝️
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