निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
चंचलता शिशु की स्वाभाविक प्रवृत्ति है ।चंचलता अथवा सक्रियता उसके अंदर विद्यमान कर्म शक्ति की शिक्षा योजना का सबसे प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए ।बालक की कर्म- शक्ति को सही दिशा देते हुए उसे रचनात्मक कार्यों की ओर उन्मुख करना शिक्षा -योजना का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए ।बालक की कर्म शक्ति का सही दिशा में मार्गांतरण न होने से वह ध्वंसात्मक भी सिद्ध हो सकती है ।बालक की यह ध्वंसात्मक प्रवृत्ति आगे चलकर राष्ट्र की समृद्धि और सुख शांति के लिए प्रश्न चिन्ह बन जाती है। कर्म शक्ति के साथ ही शिशु की एकाग्रता की शक्ति को जागृत करना भी आवश्यक है। एकाग्रता के गुण के बल पर ही वह अपने कार्य का संपादन ठीक तरह कर पाएगा और भावी जीवन में गंभीर विषयों पर चिंतन - मनन करने की शक्ति का विकास शनै :-शनै : यहीं से प्रारंभ होगा ।मन से अपनी कर्म शक्ति का उपयोग करने वाला शिशु प्रबुद्ध नागरिक बनेगा और अपने उत्तरदायित्व का सही रूप से निर्वाह करने में वह कहीं भी चूक नहीं करेगा ।राष्ट्र के विकास में ऐसे नागरिकों का योगदान स्वयं सिद्ध है ।शिशु में स्वावलंबन के भाग को जागृत करना अत्यंत आवश्यक है पर आश्रित रहने की आदत से व्यक्ति अपंग हो जाता है ,जो स्वयं अपनी छोटी मोटी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर आश्रित रहेगा वह दूसरों के हित के लिए क्या कर सकता है? स्वावलंबन का गुण शिशु में स्वत: ही नहीं आ जाता ।इसके लिए सुनियोजित शिक्षा- पद्धति अपरिहार्य है।
1.) शिशु की किस शक्ति को जागृत करना आवश्यक है?
व्याकुलता
अधीरता
व्यग्रता
एकाग्रता
2.) शिशु राष्ट्र का प्रबुद्ध नागरिक कैसे बन सकता है?
कर्म शक्ति का उपयोग करके
अकर्मण्य बनकर
धन अर्जित करके
धर्म करके
3.) दूसरों पर आश्रित रहने से छात्र में क्या विकार आ जाता है?
सफलता प्राप्त करता है
सफलता प्राप्त करता है
सामान्य रहता है
अपंग हो जाता है
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nardayank vushnathak frunda sisi lokand macchi
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