निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए 1. ईर्ष्या दूद्वेष से प्रेरित निंदा भी होती है। लेकिन इसमें वह मजा नहीं, जो मिशनरी भाव से निंदा करने में आता है। इस प्रकार का निंदक बड़ा दुखी होता है। ईर्ष्या-द्वेष से चौबीसों घंटे जलता है और निंदा का जल छिड़ककर कुछ शांति अनुभव करता है। ऐसा निंदक बड़ा दयनीय होता है। अपनी अक्षमता से पीड़ित वह बेचारा दूसरे की सक्षमता के चाँद को देखकर सारी रात श्वान जैसा भौंकता है। ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निंदक को कोई दंड देने की जरूरत नहीं है। वह निंदक बेचारा स्वयं दंडित होता है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता। उसे और क्या दंड चाहिए? निरंतर अच्छे कार्य करते जाने से उसका दंड भी सख्त होता जाता है। जैसे एक कवि ने एक अच्छी कविता लिखी, ईर्ष्याग्रस्त निंदक को कष्ट होगा। अब अगर एक और अच्छी कविता लिख दी, तो उसका कष्ट दुगुना हो जाएगा।(क) ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित निंदा करने से अधिक मजा किस दूसरे भाव से निंदा करने में आता है? (ख) ऐसा निंदक स्वयं ही किस प्रकार दंडित होता रहता है? (ग) दूसरों के द्वारा अच्छे काम करते जाने से निंदकों का दंड किस प्रकार सख्त होता जाता है? (घ) गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। (ङ) बेचारा व सक्षमता' शब्द में उपसर्ग बताइए।
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1 mishnari
2 wo jalan ke mare so nahi pata hai
3 jaise koi kavi achi kavita likh de to usase nindako ko sakhta dand milta h
4 nindako ka dand
5 bechara ka upsarg hai be
or kshamta ka upasarg hai sa
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