Hindi, asked by Shyamkavasi, 3 months ago

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
'सूरज डूबने लगा और धीरे धीरे ग्लेशियरों में पिछली केसर
बहने लगी। बरफ कमल के लाल फूलों में बदलने लगी, घाटियाँ
गहरी पीली हो गई। अंधेरा होने लगा तो हम उठे और मुंह हाथ
घोने और चाय पीने लगे।
पर सब चुपचाप थे, गुमसुम जैसे सबक
कुछ छिन गया हो, या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो, जिमी
अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हो या अपने में दूब गए हो।​

Answers

Answered by shishir303
4

सूरज डूबने लगा और धीरे-धीरे ग्लेशियरों में पिघली केसर बहने लगी। बर्फ कमल के लाल फूलों में बदलने लगीं। घाटियां गहरी-पीली हो गई। अंधेरा होने लगा तो हम उठे और मुँह-हाथ धोने और चाय पीने में लगे। पर सब चुपचाप थे, गुमसुम, जैसे सब कुछ छीन लिया हो या शायद सबको कुछ ऐसा मिल गया हो, जिसे अंदर ही अंदर सहेजने में सब आत्मलीन हों या अपने में डूब गए हों।

सप्रसंग : ये गद्यांश धर्मवीर भारती द्वारा रचित ‘ठेले पर हिमालय’ नामक यात्रा वृतांत लिया गया है। इस यात्रा वृतांत में लेखक अपनी हिमालय यात्रा का वर्णन किया है।

अर्थ :  लेखक कहता है, कि उनकी हिमालय यात्रा के समय एक पड़ाव पर जब शाम होने लगी और सूरज डूबने लगा। और ग्लेशियरों में पिघल कर जो केसर थी, वो बहने लगी। डूबता हुआ सूरज की किरणे लाल हो चुकी थी, जो बर्फ से टकराकर ऐसी प्रतीत हो रही थीं, जैसे कि चारों तरफ बर्फ पर लाल फूल बिखरे हों। अंधेरा होने कारण लेखक के दल के सभी सदस्य उठे और अपना हाथ-मुँह धोकर चाय पीने लगे। डूबते सूरज का वातावरण अत्यन्त मनमोहक हो चला था, जिसके कारण उस वातावरण के सौंदर्य को निहारने में सब इतने मग्न हो कि किसी को अपने आस-पास का होश न रहा।  

○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○

Similar questions