Hindi, asked by Sarangsksarang1130, 1 year ago

निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ कीजिए
1. हम नाम के ही आस्तिक हैं। हर बात में ईश्वर का तिरस्कार करके ही हमने आस्तिक की ऊँची उपाधि पाई है। ईश्वर का नाम दीनबन्धु है। यदि हम वास्तव में आस्तिक हैं, ईश्वर भक्त हैं तो हमारा यह पहला धर्म है कि दोनों को प्रेम से गले लगाएँ, उनकी सहायता करें, उनकी सेवा करें, उनकी शुश्रूषा करें। तभी तो दीनबन्धु ईश्वर हम पर प्रसन्न होगा। पर हम ऐसा कब करते हैं? हम तो दीन दुर्बलों को ठुकराकर ही आस्तिक या दीनबन्धु भगवान के भक्त आज बन बैठे हैं। दीनबन्धु की ओट में हम दोनों को खासा शिकार खेल रहे हैं। (पृष्ठ-19)

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Answered by mithran9115
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Answer:

गहक पदत ुगदस ५किा दद्रलि बूबकव ीग मीददि िपदतु ि५दकव ्हस ाहकदील ूहककनिब िबहिै पददु ूहदद ॉैािपल रदज ाहगै ीाा३ीीी ब७गदद परककक हजजज हगदद ुकतत ुककक ुरक नवल पगदद पगदज पदज ६बीि ददक ुकद द७बू ीहग. गगगगत७ी गगूल हरवू ५७दज,बहदिै हीहगद

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