Hindi, asked by Zasss4010, 3 months ago

निम्नलिखित गद्यांश की सप्रसंग व्यख्या कीजिये
मित्रों से अपनी व्यथा कहते समय हम बहुधा दुःख बढ़कर कहते हैं, जो बातें पद को समझी जाती हैं, उनकी चर्चा करने से एक तरह का अपनापन होता है। हमारे मित्र समझते हैं, हमसे जय भी दुराव नहीं रखता और उन्हें हमसे सहानुभूति हो जाती है। अपनापन दिखाने की यह आदत औरतों में अधिक होती है।

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Answered by siwanikumari42
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गोदान" के ७५ साल पूरे होने पर लोकप्रिय समीक्षक वीरेन्द्र यादव जी ने इस पर समीक्षा लिखी है.जिसे प्रभात खबर ५ जून २०११ के अंक में प्रकाशित किया है. गोदान की समीक्षा के सहारे उन्होंने अतीत को वर्त्तमान से जोड़कर एक नई व्याख्या और दृष्टिकोण को जन्म दिया है.जिस गंभीर और मार्मिक नजरिये से "गोदान" के नेपथ्य से वर्त्तमान पर तमाचा जड़ें हैं वह कहीं न कहीं हमारी पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान है. यह समीक्षा २१ सदी के इन्डिया का पुर्नमूल्यांकन के लिए बाध्य करती है.हमारे पास परमाणु बम है.दुनिया के पैमाने पर उभरती नई आर्थिक शक्ति में हमारी गिनती हो रही है.दुनिया का दादा अमेरिका तक से अपनी पीठ थपथपाए गदगद सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के कथित ईमानदार प्रधानमंत्री भारत के मौजूदा विकास दर के मार्फ़त शक्तिशाली राष्ट्र बनने का सपना देख रहे हैं.लेकिन इसी देश का आम आदमी दो जून के रोटी,कपड़ा और मकान का सपना नहीं पूरा कर पा रहा है.

मुंशी प्रेमचंद जी ने 'गोदान' की रचना जिस वक़्त की थी,उस समय भारत ब्रिटिश राज के जंजीरों में जकड़ा हुआ कराह रहा था. उनकी रचना में जमींदारी,किसान,कृषि,शोषण,सामंती व्यवस्था,धर्म और पाखंड पर जहाँ एक तरफ चोट है,वहीँ दूसरी तरफ अपने जीवन दर्शन को मालती आदि पात्रों को आधार बना कर अभिव्यक्र करते हैं. मुंशी प्रेमचंद जी ने परतंत्र भारत में जिन समस्याओं को उठाया था.वे स्वतंत्र भारत में भी वे जस की तस मौजूद हैं.यानि इतिहास वर्तमान से ज्यों का त्यों चिपका हुआ है.सवाल उठता है कि २१ सदी में भी "होरी" ही क्यों आत्महत्या करने के लिए मजबूर है ? पूंजीपति क्यों नहीं...?

लोकप्रिय आलोचक श्री वीरेन्द्र जी यादव की यह समीक्षा वर्तमान और अतीत का मूल्यांकन करती नज़र आती है.'गोबर' और 'धनिया' के प्यार को आधार बनाकर वीरेन्द्र जी ने खाप पंचायतों पर जो टिपण्णी की है,वह काफी चिंतनीय और विचारणीय है.सवाल उठता है क्या ७५ पहले की ग्राम पंचायते मौजूदा खाप पंचायतों से उदार और अधिक मानवीय थीं...? तब 'गोबर' और 'धनिया' को पंचायत ने अर्थ दंड,विरादरी से बेदखल कर संतुष्ट हो गयी थी.लेकिन अब की खाप पंचायते ज्यादा खूनी और हत्यारी हैं,राज्य-केंद्र सरकारें इन पंचायतों के आगे नतमस्तक दिखती हैं.

क्या आज की तुलना में ब्रिटिश काल में प्रेम करना ज्यादा सहज और आसान था...? क्या उस समय की न्याय प्रणाली वर्त्तमान की अपेक्षा अधिक बेहतर थीं...?

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