CBSE BOARD X, asked by pCh8ameshmanna, 1 year ago

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढकर पुछे गए प्रश्नों के उत्तर दिजिए|
तुम्हे क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर तुम्ही को देना होगा, दूसरा कोई नहीं दे सकता| कैसा भी विश्वास-पात्र मित्र हो, तुम्हारे इस काम को वह अपने उपर नहीं ले सकता| हम अनुभवी लोगों की बातों को आदर के साथ सुनें, बुद्धिमानों की सलाह को कृतज्ञतापूर्वक माने पर इस बात को निश्चित समझकर कि हमारे कार्यों से ही हमारी रक्ष या हमारा पतन होगा, हमें अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को दृढतापूर्वक बनाए रखना चाहिए| जिस पुरूष की दृष्टि सदा नीची रहती हैं, उसका सिर कभी उपर न होगा| नीची दृष्टी रखने से यद्यपि रास्ते पर रहेंगे पर इस बात को न देखेंगे कि यह रास्ता कहां ले जाता है| चित्त की स्वतंत्रता का मतलब चेष्टा की कठोरता या प्रकृति की उग्रता नहीं है| अपने व्यवहार में कोमल रहो और अपने उद्देश्यों को उच्च रखो, इस प्रकार नम्र और उच्चाशय दोनों बनों| अपने मन को कभी मरा हुआ न रखो| जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना उपर रखता है, उतना ही उसका तीर उपर जाता है, इसी चित्त प्रवृति के बल पर मनुष्य परिश्रम के साथ दिन काटता है और दरिद्रता के दु:ख को झेलता है| चित्त-वृत्ती के प्रभाव से हम प्रलोभनों का निवारण करके सदा पद-दलित करते है कुमंत्रणाओं का तिरस्कार करतें हैं और शुद्ध चरित्र के लोगों से प्रेम और उनकी रक्षा करते है़|
क) हम जीवन में सही निर्णय किस प्रकार ले सकते हैं?
ख) लेखक नीची दृष्टि न रखने कि सलाह क्यों देती है?
ग) नीची दृष्टि रखने से क्या लाभ है?
घ) चित्त की स्वतंत्रता किसे कहा गया है?
ङ) मन को मरा हुआ रखने से क्या आशय है?
च) चित्तवृत्ती के बल पर मनुष्य सफलता किस प्रकार प्राप्त करता है?

Answers

Answered by latikagk
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क)    जब हम अनुभवी लोगों की बातों को आदर के साथ सुने, बुद्धीमानों की सलाह को कृतज्ञतापूर्वक मानें|

ख)    नीची दृष्टी रखने से मनुष्य न तो उन्नति कर पाता है, और न ही उच्च दिशा की ओर पाँव रख पाता है|

ग)    नीची दृष्टी का लाभ यह हैं कि इससे मनुष्य सदा सही रास्ते पर चलता है पर साथ-साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रास्ते की मंजिल क्या है|

घ)     चित्त की स्वतंत्रता से अभिप्राय सही निर्णय लेने में सक्षम होने के साथ व्यवहार में कोमलता व उद्देश्य को उच्च रखना लेकिन प्रकृति में कठोरता या उग्रता नहीं होनी चाहिए|

ङ)     जब मन उत्साहहीन, निराश, उदास व पराजित महसूस करता है तब उसकी स्थिति मरे समान हो जाती है|

च)    चित्त वृत्ति के बल पर मनुष्य परिश्रम करके सभी दु:खों को साहसपूर्वक झेल पाता है |



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