निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
भारतीय संस्कृति संतोष पर ही आधारित है। श्रम साधना के अनंतर जिसके मस्तिष्क में संतोष
समाया है उसने राज्य और राजमुकुट का वैभव प्राप्त कर लिया। सच तो यह है कि संतोष प्राकृतिक
संपदा है, ऐश्वर्य कृत्रिम गरीबी । संतोष का आदर्श यही है कि हम इच्छाओं को सीमित रख कर सत्य व
ईमानदारी से श्रम करें और फल की चिंता ना करते हुए उसे परमात्मा और परिस्थितियों पर छोड़ दें।
प्रत्येक मानव में समाज के लिए उपयोगी बनने का भाव होना चाहिए। ऐसी उपयोगिता में हृदय को
सरस बनाने की अपार शक्ति है | समाज के अनेक जीवों के लिए उपयोगी बनकर ही हम सहज में
समस्त चिंताओं को निष्कासित कर सकते हैं। हमें इस तथ्य का भली-भाँति बोध होना चाहिए कि सुखी
होने का भाव है - दूसरों को सुखी बनाना । मन, वाणी और कर्म से शुद्ध व्यक्तित्व ही सच्चे सुख की
रसधार में सदैव स्नान करता है | आत्मा में सुख-सौंदर्य की विपुल वर्षा के लिए संतोष एक साजिला मेघ
है | सुख और संतोष प्रायः साथ ही चलते हैं ।
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(क) मानव में कैसा भाव होना चाहिए और क्यों?
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प्रत्येक मानव मे समाज के लिये उपयोगी बन्ने का भाव होना चाहिए
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