Hindi, asked by anuragtiwari88, 3 months ago

निम्नलिखित गद्यांशको पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
बहुत से मनुष्य यह सोच-सोचकर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, दैव हमारे विपरीत है, अपनी सफलता को
अपने ही हाथों पीछे धकेल देते हैं। उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता
और विजय कहाँ? यदिहमारा मन शंका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा,
क्योंकि सफलता की, विजयकी, उन्नतिकीकुंजी तोअविचल श्रद्धा ही है।








इस गद्यांशकाअर्थअपने शब्दों में लिखिए-​

Answers

Answered by Sasmit257
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Answer:

परन्तु स्वार्थान्धो मानवस्तदेव पर्यावरणम् नाशयति। स्वल्पलाभाय जनाः बहुमूल्यानि वस्तुनि

नाशयन्ति। यन्त्रगाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपात्यते येन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव

नाशो जायते। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते व्यापारवर्धनाय ,

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येन अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात्

सङ्कटापन्नो जातः । एवं हि स्वर्थान्धमानवैर्विकृतिमुपगता प्रकृतिरेव तेषां विनाशकर्ती सञजाता।

पर्यावरणे विकृतिमुपगते जायन्ते विविधा रोगा भीषणसमस्याश्च । तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

एक पदेन उत्तरत

(क) कीदृशः मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति ?

(ख) यन्त्रगाराणां विषाक्तं जलं कुत्र निपात्यते ?

पूर्ण वाक्येन उत्तरत

(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते तेन किं किं जायते ?

भषिककार्यम् -

(क) 'वस्तुनि' पदस्य विशेषणं पदं किम् ?

(क) स्वल्पलाभाय (ख) बहुमूल्यानि

(ख) — बहुलाभाय ' पदस्य विलोम पदम् चित्वा लिखत ?

(क) स्वल्पलाभाय (ख) बहुमूल्यानि

Answered by itZzAnshu
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गद्यांश का अर्थ :

जीवन में मनुष्य कई बार अपनी असफलता का दोष अपनी किस्मत को दे देता है | मुशी मेहनत नहीं करता और सफलता की उम्मीद करता है | मन ही मन में सोच लेता है कि भगवान हमें सफलता देंगे और मेहनत करा छोड़ देते है | जब वह बिना मेहनत करके असफलता प्राप्त करता है , तब वह निराश हो जाता है | वह मन में बैठा लेता कि उसे बिना मेहनत के सफलता मिल जाएगी | अपने आप को पीछे धकेलता है | वह मेहनत न करके सफलता की उम्मीद करता है |

मनुष्य को सफलता प्राप्त करने के लिए हमेशा मेहनत करनी चाहिए , अपने भाग्य पर निर्भर नहीं रहना चाहिए |

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