निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
3.जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
3.
अध्ययन
Answers
सभी पंक्तियों का भाव इस प्रकार होगा...
कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि।
भावार्थ ➲ कबीर कहते हैं कि जिस तरह कस्तूरी मृग कस्तूरी की सुगंध की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है, लेकिन उसे यह नहीं पता होता कि कस्तूरी तो उसकी नाभि में ही है। उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानता के कारण ईश्वर की खोज में इधर-उधर भटकता है, जबकि उसे यह नहीं पता होता कि ईश्वर तो उसके अंदर ही वास करता है।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
भावार्थ ➲ कबीर कहते हैं कि जब मेरे मन में अंधकार था, तब मैं ईश्वर को नहीं समझ पाता था। अब मैं ईश्वर को जान गया हूं तो मेरे मन का सारा अंधकार दूर हो गया है। कबीर का कहने का तात्पर्य यह है कि अज्ञानता का अंधकार और ईश्वर दोनों साथ साथ नहीं रह सकते। जहाँ ईश्वर होगा, वहाँ अज्ञानता का अधिकार हो ही नहीं सकता।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
भावार्थ ➲ कबीर कहते हैं कि चाहे कितने भी ग्रंथ पढ़ लो, शास्त्र पढ़ लो, लेकिन सच्चा ज्ञान नहीं मिल सकता। शास्त्र-ग्रंथ पढ़ने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए प्रेम भरा समर्पण भाव होना चाहिए। ईश्वर की प्राप्ति प्रेम के माध्यम से ही हो सकती है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है।
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