(४) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए :
चलतीं साथ काँटों के बीच
पटरियाँ रेल की खिलखिलाता फूल
फिर भी मौन । देता प्रेरणा ।
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"चलती साथ पटरिया रेल की फिर भी मौन"जापानी काव्य विधा 'हाइकु' { विश्व की सबसे छोटी कविता } में 'मन' नामक कविता के कवि 'विकास परिहार ' ने उक्त पंक्तियों के माध्यम से पाठक को यह कहा है कि मनुष्य को रेल की पटरियों की भांति होना चाहिए । इसका भावार्थ है कि जिस तरह रेल की पटरियां सफर में रेल के साथ-साथ होती हैं किंतु नि:शब्द यानी मौन रहती है उसी प्रकार मनुष्य को भी विषम परिस्थितियों में या दुख में रोना नहीं चाहिए अपितु मौन रहकर शांति से परिस्थिति का सामना करना चाहिए । वस्तुत:मनुष्य को चाहिए कि वह साक्षी भाव से सुख-दुख को स्वीकार करें । "कांटो के बीच खिलखिलाता फूल देता प्रेरणा"जापानी काव्य विधा ' हाइकु ' के अंतर्गत रचित 'मन' नामक कविता के रचयिता 'विकास परिहार' ने इन पंक्तियों के माध्यम से आशावान बनने का संदेश दिया है । कवि कहते हैं कि जिस तरह फूल कांटों के बीच भी खिल जाता है उसी तरह मनुष्य को भी उस खिले हुए फूल से प्रेरणा लेकर विषम परिस्थितियों में भी निराश नहीं होना चाहिए । अर्थात जीवन में आई हुई कठिनाइयों का मुकाबला करना चाहिए । हालात चाहे जैसे भी हो हमें उनका सामना मुस्कुराकर करना चाहिए । यही इन पंक्तियों का केन्द्रीय भाव भी है |
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चलतीं साथ काँटों के बीच
पटरियाँ रेल की खिलखिलाता फूल
फिर भी मौन । देता प्रेरणा ।
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भावार्थ =
उपयुक्त पंक्तियों के रचनाकार श्री विकास परिहार जी हैं । जिसका केंद्रीय भाव यह हैं कि मनुष्य को विषम परिस्थितियों में दुःख नहीं होना चाहिए । मनुष्य को कभी सुख तो कभी दुःख का सामना करना पड़ता हैं और यह प्रकृति का नियम हैं । रेल की पटरियाँ हमें यह प्रेरणा देती है कि जैसे हम ट्रेन में सफर करते हैं , तो हम अकेले व शांति से करते हैं वैसे ही हमें विषम परिस्थितियों का सामना मौन रह कर करना चाहिए ना कि इसका उग्रता से करना चाहिए । सफलता का मूल मंत्र हैं ।
काँटों के बीच कमल का खिलना हमें यह इशारा करता हैं । कि परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हो हमें उसका सामना धैर्य से करना चाहिए समय जरूर लगता हैं पर परिणाम सुखद होता हैं उग्रता मनुष्य को पथभ्रस्ट कर देती है । जो उन्हें असफलता के मार्ग पर ले जाती हैं ।
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धन्यवाद ।
पटरियाँ रेल की खिलखिलाता फूल
फिर भी मौन । देता प्रेरणा ।
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भावार्थ =
उपयुक्त पंक्तियों के रचनाकार श्री विकास परिहार जी हैं । जिसका केंद्रीय भाव यह हैं कि मनुष्य को विषम परिस्थितियों में दुःख नहीं होना चाहिए । मनुष्य को कभी सुख तो कभी दुःख का सामना करना पड़ता हैं और यह प्रकृति का नियम हैं । रेल की पटरियाँ हमें यह प्रेरणा देती है कि जैसे हम ट्रेन में सफर करते हैं , तो हम अकेले व शांति से करते हैं वैसे ही हमें विषम परिस्थितियों का सामना मौन रह कर करना चाहिए ना कि इसका उग्रता से करना चाहिए । सफलता का मूल मंत्र हैं ।
काँटों के बीच कमल का खिलना हमें यह इशारा करता हैं । कि परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत हो हमें उसका सामना धैर्य से करना चाहिए समय जरूर लगता हैं पर परिणाम सुखद होता हैं उग्रता मनुष्य को पथभ्रस्ट कर देती है । जो उन्हें असफलता के मार्ग पर ले जाती हैं ।
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धन्यवाद ।
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