निम्नलिखित कावयाश पढ़कर उत्तर दिजिए।
खोलकर सीना, बाँधकर मुट्ठी कड़ी मैं खड़ा ललकारता हूँ
ओ नियति!
तू सुन रही है?
मैं खड़ा तुमको यहाँ ललकारता हूँ।
हाँ, वही मैं
जो कल तक कर रहा था चरण में तेरे निवेदित
फूल पूजा के
करुण आँखों को भिगोकर
काँपती उँगलियों की अंजलि सँजोकर
हाँ, वही मैं
जो कि कल तक कह रहा था :
तुम्हीं हो सर्वस्व मेरी
और यह जीवन तुम्हारी कृपा-करुणा का भिखारी
दान दो संजीवनी का, या गरल दो मृत्यु का स्वीकार है।
विनत शिर, स्वर मंद, कंपित ओष्ठ!
क्योंकि मैंने आज पाया है स्वयं का ज्ञान
क्योंकि मैं पहचान पाया हूँ कि मैं मुक्त, बंधनहीन
और तू है मात्र भ्रम, मन-जात, मिथ्या वंचना, तू इसलिए इस ज्ञान के आलोक के पल में
मिल गया है आज मुझको सत्य का आभास
प्रशन / उत्तर
1. कवि किसको और कैसे ललकार रहा है ?
2. आत्मज्ञान का कवि पर क्या प्रभाव पड़ा ?
3. 'नियति' शब्द का क्या अर्थ है ?
4. कवि ने अपना सर्वस्व किसे कहा है?
5. कल तक कवि किसके चरणों में निवेदन करता था ?
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Democracy (Greek: δημοκρατία, dēmokratiā, from dēmos 'people' and kratos 'rule') refers to two forms of government: The most common form in which the people have the authority to choose their governing legislators and the original form in which the people have the authority to decide on legislation.
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Democracy (Greek: δημοκρατία, dēmokratiā, from dēmos 'people' and kratos 'rule') refers to two forms of government: The most common form in which the people have the authority to choose their governing legislators and the original form in which the people have the authority to decide on legislation.
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