निम्नलिखित में अभिव्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए-
(क) पढ़ते हैं आदमी ही कुरआन और नमाज़ यां
और आदमी ही उनकी चुराते हैं जूतियाँ
जो उनको ताड़ता है सो है वो भी आदमी
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नमाज़ भी आदमी ही पड़ता है और कुरान भी आदमी ही पड़ता है। जो उनकी जूतियाँ चुराते हैं वो भी आदमी ही है। जो उनको ताड़ता है वो भी आदमी ही है। इस जहाँ में करता भी आदमी है और भुगत्ता भी आदमी है। खुदा सिर्फ आदमी को उसकी करनी का फल देता है। किसी भी चीज के लिए खुदा को दोषी ना ठेहराओ क्योंकि करता सब आदमी ही है। खुदा सिर्फ करनी के हिसाब से आदमी की सजा को मुकम्मल करता है।
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