Math, asked by mantibala2, 8 months ago

निम्नलिखित में से किसी एक का भाव पल्लवन कीजिए-
'जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना।"
(अथवा)
"परहित सरिस धरम नहिं भाई।"​

Answers

Answered by shishir303
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'जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना।’

अर्थ : अर्थात जहाँ पर यानि जिस घर में आपस प्रेम और स्नेह एवं सद्भाव होता है, परिवार के सब लोग प्रेमभाव से रहते हैं, वहाँ पर हर तरह की सुख-सम्पत्ति होती है। अर्थात वहाँ पर किसी भी प्रकार के सुख को कोई कमी नही होती।

भाव पल्लवन...

इन पंक्तियों से तात्पर्य यह है कि हम यदि अपने घर में प्रेम एवं सद्भाव से रहें, परिवार के सभी लोग मिल-जुल कर रहें, तो परिवार का वातावरण सौहार्दपूर्ण बना रहता है। जहाँ माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं, तो उनके बच्चे भी बड़े होकर माता पिता के प्रति अपने कर्तव्य का पूर्ण पालन करते हैं। जहाँ माता-पिता अपने बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दे पाते वहाँ बच्चे बड़े होकर गलत मार्ग पर जा सकते हैं, वह अपने माता पिता से भी दुर्व्यवहार कर सकते हैं अथवा वृद्ध अवस्था में माता-पिता को बेसहारा भी छोड़ सकते हैं।

यदि परिवार में सभ्य और सांस्कृतिक व्यवहार किया जाएगा तो बच्चे भी संस्कारी बनेंगे। यदि उनमें बचपन से ही अच्छे गुणों को अपनाने की आदत पड़ गई तो उनका आगे का जीवन श्रेष्ठ होना निश्चित हो जाता है। जिस परिवार में ग्रह कलेश, तनाव, लड़ाई-झगड़ा आदि रहता है, वहाँ के बच्चे ऐसे वातावरण में पलकर कर संस्कार विहीन बनते हैं और किसी असामाजिक गतिविधि में शामिल हो जाते हैं।

संस्कारवान परिवार में लक्ष्मी सदैव स्थाई रूप से बात करती है जो परिवार संस्कारवान होता है, ईश्वर भी ऐसे परिवार पर निरंतर प्रसन्न होते हैं। वहाँ के लोग हमेशा प्रेम से मिलजुल कर रहते हैं। ऐसे परिवार पर भगवान भी अपनी प्रेम और कृपा की बारिश निरंतर करता है।

हमने अपने जीवन में गौर किया होगा जिस परिवार में गृह क्लेश,  तनाव, लड़ाई-झगड़ा आदि कायम रहता है, उस परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद अच्छी नही होती। अगर आर्थिक स्थिति ठीक होगी भी तो भी उस परिवार में कोई न कोई दुख अवश्य रहेगा। लेकिन जहाँ पर प्रेम है, सद्भाभ है वहाँ सुख और सम्पत्ति का स्थायी वास रहते है।

हर व्यक्ति पर अपने माता-पिता का मातृ-पितृ ऋण होता है और माता-पिता की वृद्ध अवस्था में उनकी देखभाल करके, उन्हें उचित मान सम्मान देकर इस ऋण को चुकाया जा सकता है। यह संतान का कर्तव्य है कि जब माता-पिता वृद्ध हो जाएं और उन्हें सहारे की जरूरत हो और जीवन की डगर पर जब उनके कदम डगमगाने लगें, तब उनकी संतान उनके बुढ़ापे का सहारा बनकर उन्हें जीवन की डगर पर चलने में सहायता करें। यही सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य और आचरण है।

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