निम्नलिखित में से किसी एक पद्यांश की व्याख्या संदर्भ, प्रसंग सहित
लिखन बैठि जाकी सबी, गहि-गहि गरब गरूर।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कर।।
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Answer:
संदर्भ तथा प्रसंग- प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी रचित दोहों से लिया गया है।
इस दोहे में कवि किसी नायिका की क्षण-क्षण में बदल जाने वाली छवि का अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन कर रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है-इस अपूर्व सुंदरी नायिका की सौन्दर्य-छवि का चित्र बनाने के लिए, न जाने कितने गर्वीले और अहंकारी चित्रकार आए, परन्तु सब मूर्ख या असफल सिद्ध हो गए। भाव यह है कि इस रमणी की सुन्दरता की छवि, पल-पल बदलती रहती है। अत: चित्रकार चित्र बनाकर जैसे ही चित्र और उस सुंदरी का मिलान करता है, उसे भिन्नता दिखाई देती है। अत: उसका महान चित्रकार होने का गर्व और अहंकार चूर हो जाता है।
विशेष-
(i) सुंदरता की परिभाषा पुराने कवियों ने बताई है कि जो क्षण-क्षण में कुछ नई दिखाई पड़े, वही वास्तविक सुंदरता (रमणीयता) है। ‘कवि ने अपनी नायिका को इसी परिभाषा के अनुसार आदर्श सुंदरी सिद्ध किया है।
(ii) ‘गहि-गहि’ में पुनरुक्ति, ‘गहि-गहि गरब गरूर’ में अनुप्रास तथा पूरे दोहे के कथन में ‘अतिशयोक्ति अलंकार है।
(iii) लक्षणा शक्ति संपन्न भाषा और अतिशय प्रशंसापूर्ण शैली का प्रयोग हुआ है।
Explanation:
यह उत्तर आपकी सहायता करेगा।