निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर 100 से 150 में निबंध लिखिए
(ख) बाल मजदूरी की समस्या -
(ग) आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु:
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Answer:
हर साल 12 जून को दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ओर से बाल मज़दूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को बाल मजदूरी से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से की गई थी ।
आपको ये जानकर बहुत दुःख होगा कि हर साल मानव तस्करी कर मासूम बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर बाल मजदूर बना दिया जाता है। ये भी पाया गया है कि बांग्लादेश, नेपाल सहित सीमा से सटे देशों से नाबालिग बच्चों को गैरकानूनी रूप से भारत लाया जाता है। इन मासूमों को या तो मजदूर बना दिया जाता है या फिर नाबालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति के रास्ते पर चलने को मजबूर किया जाता है। कम से कम दामों में बच्चों की खरीद-फरोख्त की जाती है। कई बार इन मासूमों की कीमत पालतू जानवरों से भी कम होती है। इन बच्चों को बदतर स्थिति में रखा जाता है।
देश में बाल मजदूरी के खिलाफ कानून सख्त है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया पेंसिल पोर्टल बाल श्रम को खत्म करने वाला एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म है। सशक्त विकास योजना के लक्ष्यों में बाल मज़दूरी को 2025 तक समाप्त कर करने का लक्ष्य रखा गया है।
बालश्रम के विरुद्ध फैक्टरी कानून 1948 में ,बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986 में बनाया गया तथा साल 2016 में बदलाव करके इसे और सख्त बनाया गया
जिला बाल कल्याण समिति जिले में उपेक्षित बच्चों, बाल श्रमिक बच्चों का पुनर्वास करवाती है। समिति अध्यक्ष को मजिस्ट्रेट की शक्तियां होती हैं, जिसके तहत वे कहीं भी कार्रवाई कर बाल श्रमिकों को मुक्त करवाकर उनका पुनर्वास कर सकते हैं।
नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा संचालित बचपन बचाओ आंदोलन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग 7 से 8 करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं। इसके अनुसार,अधिकतर बच्चे् संगठित अपराध रैकेट का शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए मजबूर किए जाते हैं जबकि बाकी बच्चे गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 26 करोड़ बच्चों में से एक करोड़ बाल श्रम के शिकार हैं।
बाल श्रम क़ानून तो बस किताबो में ही दब के रह गया है।आपको बहुत छोटे छोटे बच्चे हर छोटे मोटे होटलों व् ढाबों पर कप-प्लेट उठाते मिल जायँगे। जिन नन्हे हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं वो नन्हे हाथ चाय के कप धोते नजर आते हैं। इसका एक कारण इन बच्चों की मजबूरियां हैं, इनके समाज का ऐसा माहोल है की ये बच्चे इतनी कम उम्र में काम करने को मजबूर हो जाते हैं। ये छोटे से दिखने वाले बच्चे अपने घर की बड़ी जिम्मेदारी उठा लेते हैं।
"छोटू, चार कप चाय लाना, दो प्लेट नाश्ता लगाना" ये ऎसे वाक्य हैं, जो अक्सर ढाबों- होटलों पर सुनाई देते हैं। छोटू वह बच्चा है जो विषम परिस्थितियों या गरीबी के कारण पढ़ने की उम्र में दो वक्त की रोटी के लिए रात-दिन काम करता है और छोटी सी गलती पर अपने मालिक की मार भी खाता है।
ये जो होटलों-ढाबों में छोटू होते है ना..ये अपने घर के बड़े होते हैं..
काश ऐसा कोई कानून होता जिससे प्रत्येक गरीब को महीने की कम से कम इतनी पेंशन मिलती की वो अपना और अपने परिवार का पेट भर सकता। काश इस तरह क़ानून जल्दी पारित हो जाए और इन नन्हे हाथों में किताबें आ जाएं और ये बच्चे भी स्कूलो की तरफ अपना रुख करें।
बालश्रम की समस्या हमारे लिए एक चुनौती बनती जा रही है। ये एक बड़ी सामाजिक समस्या बन चुकी है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। बालश्रम कराना अपराध है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से को साफ कह देना चाहिए कि यदि वे बच्चों का शोषण बन्द नहीं करते हैं तो उनसे कुछ भी नहीं खरीदेंगे। हमें बाल-श्रम से मुक्त हुए बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा के लिए सहायता करने में मदद करनी चाहिए। रिश्तेदारों के यहां यदि बाल श्रमिक है, तो हमें सहजतापूर्वक चाय-पानी ग्रहण करने से मना करना चाहिए और उनका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।
आओ सँवारें जीवन और एक प्रयास करें बाल मजदूरी से शिक्षा की ओर..
हर रोज ही इस जहां से जवाब मांगते हैं,
मन ही मन ये बच्चे भी किताब मांगते हैं !
ज्ञान का दीप जलाना है, घर घर खुशहाल बनाना है ।