Math, asked by mohitkr3408, 5 months ago

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए :
नर हो, न निराश करो मन को।

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Answered by Anonymous
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Answer: नर हो न निराश करो मन को

प्रस्तावना–

मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। उसका विवेक ही उसे अन्य जीवों के ऊपर का प्राणी बनाता है। मानव जीवन में अनेक समस्याएँ और संकट आते हैं। इनका सामना उसे करना ही पड़ता है। अपने विवेक के सहारे वह जीवन में सफलता पाता है और निरन्तर आगे बढ़ता है। आशा सफलता और निराशा असफलता है–मनुष्य के मन में आशा और निराशा नामक दो भाव होते हैं।

अपने अनुकूल घटित होने की सोच आशा है। आशा को जीवन का आधार कहा गया है। भविष्य में सब कुछ अच्छा, आनन्ददायक और इच्छा के अनुसार हो, यही आशा है, यही मनुष्य चाहता भी है। इसके विपरीत कोई बात जब होती है तो मनुष्य के हृदय में जो उदासी और बेचैनी उत्पन्न होती है, वही निराशा है। निराश मनुष्य जीवन की दौड़ में पीछे छूट जाता है।

अकर्मण्यता और भाग्यवाद–

धार्मिक मान्यताएँ भाग्यवाद की शिक्षा देती हैं। धर्म कहता है जीवन में जो कुछ होता है। वह पूर्व और किसी अन्य शक्ति द्वारा नियोजित है। मनुष्य उसे बदल नहीं सकता।

जो भाग्य में लिखा है, वह होकर ही रहेगा। भाग्यवाद का यह विचार मनुष्य को अकर्मण्य बना देता है अथवा यों भी कह सकते हैं कि अकर्मण्य और आलसी व्यक्ति भाग्य का सहारा लेकर अपने दोष छिपाता है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है करके विधिवाद न खेद करो। निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो।

बनता बस उद्यम ही विधि है। मिलती जिससे सुख की निधि है। भाग्य का निर्माता–मनुष्य–मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं ही करता है। ईश्वर ने उसे विवेक सोचने के लिए और दो हाथ काम करने के लिए दिए हैं।

इनका सही ढंग से प्रयोग करके वह अपने भाग्य का निर्माण करता है। संसार में बिना कर्म किए कुछ प्राप्त नहीं होता। गौतम बुद्ध ने भिक्षुओं को शिक्षा दी थी–’चरैवेति’ अर्थात् निरन्तर चलते रहो, ठहरो मत, आगे बढ़ो। भाग्य के निर्माण का यही मंत्र है।

उत्साहपूर्वक निरन्तर कर्मशील रहने वाला ही सफलता के शिखर पर पहुँचता है जो “देखकर बाधा विविध और विघ्न घबराते नहीं। रह कर भरोसे भाग्य के, कर भीड़ पछताते नहीं”–वही सच्चे कर्मवीर होते हैं। उनके मन में निराशा के भाव कभी नहीं आते। वे निरन्तर आगे बढ़ते हैं और जीवन में सफलता पाते हैं।

उपसंहार–

मानव मन शक्ति का केन्द्र है। यदि उसमें दृढ़ता नहीं है, कमजोरी है तो वह जल्दी निराश हो जाता है और हार मान लेता है। इसके विपरीत दृढ़ संकल्प वाला आशावादी मन कभी हारता नहीं।

मनुष्य को अपने मन को निराशा से बचाना चाहिए, अपनी संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाना चाहिए। मन को हारने मत दो तभी जीवन में जीत के फल का मीठा स्वाद पा सकोगे।

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