Hindi, asked by kvkrish1406, 15 hours ago

निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 150 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए :-1. दिखावे की संस्कृति11. ग्रामीण जीवनIII. मधुर वचन हैं औषधि, बाटुक वचन हैं तीर।​

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Answered by i6885900
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Answer:

मधुर वचन सुनकर किसका हदय प्रसन्न नहीं हो जाता। संसार की प्रत्येक वस्तु प्रेम से प्रभावित होती है। मनुष्य अपनी सद्भावनाओं का अधिकांशतः। प्रदर्शन वचनों द्वारा ही किया करता है। बालक की मीठी-मीठी बातें। सुनकर बड़े-बड़े विद्वानों व चिंतकों का हृदय भी खिल उठता है। तभी कहा गया है कि मधुर वचन मीठी औषधि के समान लगते हैं तो कड़वे वचन तीर के समान चुभते हैं।

मधुर वचन वास्तव में औषधि के समान दुखी मन का उपचार करते। हैं। दीन-दुखी प्राणी को सहानुभूति के कुछ शब्द उतना सुख दे देते हैं। जितना सुख संसार का कोई भी धनकोष नहीं दे सकता। मधुर वचन सुनकर श्रोता का तप्त-संतप्त हृदय राहत अनुभव करता है। मधुर वचन न केवल माननेवाले अपितु बोलनेवाले को भी आत्मिक शांति प्रदान करते हैं।

जो व्यक्ति मधुर वचन नहीं बोलते, वे अपनी ही वाणी का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति संसार में अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा खो बैठते हैं तथा अपने जीवन को कष्टकारी बना लेते हैं। कड़वे वचनों से उनके बनते काम बिगड जाते हैं तथा वे प्रतिपल अपने विरोधियों व शत्रुओं को जन्म देते हैं। उन्हें सांसारिक जीवन में सदा अकेलापन झेलना पड़ता है तथा मुसीबत के समय लोग उनसे मुँह फेर लेते हैं।

जहाँ कोयल की मीठी वाणी सबका मन मोह लेती है, वहीं कौए की कर्कश आवाज सबको बुरी लगती है। मधुर भाषी शीघ्र ही सबका मित्र बन जाता है। लोग उसकी प्रशंसा करते हैं। मधुर वचनों से पराए भी अपने बन जाते हैं। इसीलिए तुलसीदास कहते हैं-

वशीकरण एक मंत्र है तज दे वचन कठोर,

तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।

मधुर वचन बोलनेवाले सबको सुख-शांति देते हैं और सभी ऐसे लोगों का साथ पसंद करते हैं। इससे समाज में पारस्परिक सौहार्द की भावना का संचार करने में मदद मिलती है। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा और श्रद्धा का आधारस्तंभ वाणी ही है। अपनी वाणी का प्रयोग हम जिस प्रकार करते हैं, हमें वैसा ही फल मिलता है। हम अपने वचनों से अपनी सफलता के द्वार खोल सकते हैं या असफलता को निमंत्रण दे सकते हैं।

सभी प्राणियों का मानवोचित कर्तव्य है कि दूसरे की भावनाओं का आदर करें। ऐसा करने से मनुष्य के मनुष्य से गहन-गंभीर भावपरक व मधुर संबंध बनते हैं। कहा भी जाता है कि हम जैसे व्यवहार की आशा दूसरों से अपने लिए करते हैं, हमें स्वयं भी दूसरों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए।

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