निम्नलिखित मुद्दों की सहायता से ‘मानव के अंतरिक्ष में बढ़ते कदम’ विषय पर ७०-८० शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए । अंतरिक्ष में जीवन की खोज
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अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा. लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस और डेवी दशमलव प्रणाली में एक "वर्णनात्मक खगोल विज्ञान" नामक प्रमुख वर्गीकरण है, जिनका प्रयोग वे अपने विशाल "भूगोल" के संग्रहों के वर्णनात्मक कामों के स्थान पर करते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान को अंतरिक्ष अनुसंधान और अंतरिक्ष की खोज के साथ जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए।
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वर्ष 1969 की 20 जुलाई को जब नील आर्मस्ट्रॉंग और उनके पीछे बज आल्ड्रिन ने चांद पर कदम रखा था, तब सिर्फ इतिहास ही नहीं रचा गया था, बल्किअपरिमित खगोलीय ब्रह्मांड में असीमित संभावनाओं के मार्ग भी प्रशस्त हुए थे. अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा के अपोलो 11 के उस अभियान के बाद सिर्फ 10 और लोग ही चांद की धरती पर पहुंचे, पर इन 46 वर्षों में विभिन्न आकाशीय पिंडों के बारे में जानकारी जुटाने और वहां पहुंचने की जुगत में मनुष्य ने अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं.
नासा के यान मंगल ग्रह पर जा चुके हैं तो भारत का मंगलयान भी मंगल की कक्षा में भ्रमण कर रहा है और नयी जानकारियां मुहैया करा रहा है. चांद पर पहुंचने की वर्षगांठ पर नासा के न्यू होराइजन अंतरिक्ष यान ने सुदूर प्लूटो के बारे में अद्भुत सूचनाएं दी हैं. मंगल, प्लूटो और अन्य खगोलीय पिंडों के निरंतर करीब पहुंचने के इन प्रयासों की नींव 1969 के चांद पर जाने की कवायद में ही है. उससे पहले अंतरिक्ष अभियान अमूमन पृथ्वी की कक्षा तक ही सीमित थे और बहुत कम कोशिशें ही ऐसी थीं, जो निर्वात अंतरिक्ष की टोह लगा रही थीं. परंतु चंद्रमा पर पहुंचना मानव सभ्यता की उस सामूहिक उम्मीद का एक हद तक हकीकत होना था जो यह मानती है कि असंभव जैसी कोई चीज नहीं होती और क्षितिज के परे व्यापक ब्रह्मांड हमारी पहुंच से दूर नहीं है. अंतरिक्ष को टोहने की इस मानवीय प्रयास में भारत विकसित देशों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहा है. भारत ने सोवियत संघ की मदद से 1975 में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में भेजा था, लेकिन आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) अनेक भारतीय उपग्रहों समेत दुनिया के 19 देशो के 40 उपग्रह छोड़ चुका है.
इनमें कई यूरोपीय और विकसित देश हैं. भारत के अलावा इसरो के 20 केंद्र विभिन्न देशों में कार्यरत हैं. अंतरिक्ष में शोध और विभिन्न ग्रहों-पिंडों के बारे में जानकारियां जुटा कर मनुष्य न सिर्फअपने वर्तमान की बेहतरी के प्रयास में है, बल्कि भविष्य की नयी मंजिलों की तलाश भी कर रहा है. अपोलो 11 की वह यात्र और मंगलयान की परिक्र मा के साथ अनेक अंतरिक्ष यान हमारी कल्पनाओं को संतुष्ट करने के साथ असीम को छूने की क्षमताओं को भी साध रहे हैं. विभिन्न देशों और संस्थाओं की ये कवायदें क्षुद्रताओं में विभाजित मनुष्यता की सामूहिकता का रेखांकन भी हैं. ये साझा प्रयासों और उपलिब्धयों का विलक्षण उत्सव भी हैं.
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