Hindi, asked by ranjit383916, 10 months ago

निम्नलिखित पंक्तियों के आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) धोबी भी इतनी निर्दयता से अपने गधे को न पीटता होगा। किसी भेड़ की टाँग टूटी, किसी की कमर टूटी।
(ख) वे किसी तरह आग को बुझाने में सफल हुए किंतु गाँव भर की ऊख जलकर भस्म हो गई थी और ऊख के साथ
अभिलाषाएँ भी भस्म हो गई थी।​

Answers

Answered by shailjasinha523
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एक बार एक पंडित दक्षिणा में मिले बकरे को कंधे पर लादकर घर लौट रहा था। जंगल से गुजरते समय तीन ठगों की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने उस मोटे-ताजे बकरे को पंडित से हथियाने की योजना बनाई।

एक ठग पंडित के पास पहुँचकर बोला- अरे पंडितजी, इस कुत्ते को कंधे पर कहाँ लिए जा रहे हो। पंडित गुस्से में बोला- अरे मूर्ख, बकरे को कुत्ता कहता है। अंधा है क्या। ठग- नाराज न हों महाराज। मुझे तो जैसा दिखा, वैसा कहा। यह कहकर वह ठग चला गया। इधर पंडित ने ध्यान से बकरे को देखा और खुद को विश्वास दिलाता हुआ बोला- नहीं-नहीं, यह तो बकरा ही है और आगे बढ़ गया।

आगे उसे दूसरा ठग मिला। वह बोला- यह क्या पंडितजी, बछड़े से इतना लगाव था कि मर जाने के बाद भी उसे कंधे पर लाद रखा है। पंडित चिल्लाया- अरे सूरदास। यह स्वस्थ बकरा है। मरा हुआ बछड़ा नहीं। ठग बोला- हो सकता है मेरी ही आँखों को धोखा हुआ हो। यह कहकर वह भी चला गया। पंडित सोचने लगा- आज कैसे लोगों से पाला पड़ रहा है। लेकिन फिर उसने सोचा कि यदि वे सही हुए तो?

एक बार एक पंडित दक्षिणा में मिले बकरे को कंधे पर लादकर घर लौट रहा था। जंगल से गुजरते समय तीन ठगों की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने उस मोटे-ताजे बकरे को पंडित से हथियाने की योजना बनाई।

नहीं-नहीं, यह बकरा ही है। पंडित सोच ही रहा था कि तीसरा ठग उसके सामने आकर बोला- पंडितजी, क्या गजब कर रहे हो। गधे को कंधे पर लाद रखा है। लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे? पंडित तो पहले ही असमंजस में था। उसकी बात सुनकर उसे विश्वास हो गया कि जरूर कोई बात है।

यह बकरा नहीं, कोई भूत-प्रेत है जो पल-पल में रूप बदलता है। उस यजमान ने मुझे उल्लू बना दिया। ऐसा सोचकर उसने तुरंत उस बकरे को जमीन पर पटक दिया और अपनी जान बचाकर वहाँ से तेजी से भागा। उसे भागता देख तीनों ठग जोर-जोर से हँसने लगे। एक बोला- देखो गधा भाग रहा है।

दोस्तो, अपने से ज्यादा दूसरों की बात पर विश्वास करने वाला व्यक्ति इसी तरह मूर्ख या गधा बनता है। आज का बाजारवाद तो टिका ही इस फॉर्मूले पर है कि जैसे-तैसे लोगों को उल्लू बनाओ और अपना उल्लू सीधा करो यानी अपना माल बेचो। किसी ने कहा भी है कि दुनिया मूर्खों से भरी पड़ी है। यदि ऐसा नहीं होता तो घटिया कंपनियाँ अपना माल ही नहीं बेच पातीं।

कहावत भी है कि मूर्ख बाजार नहीं जाते तो घटिया माल कभी बिकता ही नहीं। लेकिन सब बिकता है। बल्कि कहें कि घटिया ही ज्यादा बिकता है तो ज्यादा सही होगा, क्योंकि उसके साथ कई तरह के प्रलोभन जो जुड़े होते हैं।

दिक्कत तो बढ़िया माल बेचने में आती है, क्योंकि उसे बेचते समय आप किसी को मूर्ख नहीं बनाते। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि असली चीज के कद्रदान नहीं हैं, क्योंकि दुनिया में मूर्खों के साथ ही समझदार भी रहते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि आज के जमाने में समझदार और मूर्ख में फर्क करना आसान नहीं है।

वो कहते हैं न कि गधे के सिर पर सींग नहीं होते। लेकिन सींग तो समझदार के भी नहीं होते। तो फिर पहचान कैसे की जाए? समझदार की पहचान यही है कि वह हर काम सोच-समझकर करता है। और जो किसी काम को करके सोचे, वह मूर्ख की श्रेणी में आता है, क्योंकि जो हो गया उस पर विचार करना मूर्खता ही तो है। इसलिए हमेशा किसी निर्णय पर पहुँचने से पहले अपनी बुद्धि व विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।

दूसरी ओर, मूर्खता काम की चीज भी है। लेकिन तब, जब आप समझदार होकर मूर्ख बनने का नाटक करें। कॅरियर में तो अकसर आपको अपने बॉस के सामने मूर्ख ही बनकर रहना पड़ता है, क्योंकि समझदारी दिखाओगे तो बॉस को आपसे परेशानी होने लगेगी। वह आपको अपना प्रतिस्पर्धी मान लेगा। मूर्ख बने रहोगे तो वह आपको आगे बढ़ाएगा। हालाँकि ऐसा भी सिर्फ मूर्ख बॉस ही करते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि अधिकतर बॉस ऐसा ही करते हैं। हालाँकि इसका परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ता है, क्योंकि एक स्तर से ज्यादा उनकी प्रगति नहीं हो पाती।

और अंत में, आज 'अप्रैल फूल डे' है। किसी को अप्रैल फूल या मूर्ख बनाते समय यह जरूर ध्यान रखें कि कहीं आपके मजाक से किसी का नुकसान न हो जाए। इसलिए जो भी करें, अच्छी तरह सोच-विचार कर करें, क्योंकि किसी के नुकसान से खुश होना भी मूर्खता ही है। अरे भई, अब बने बनाए को क्या बनाएँ।

⁷आग को ऑक्सीजन और ईंधन में से किसी एक को अलग कर बुझाया जा ... जंगल की आग बुझाने के लिए मुख्य ज्वाला से दूर छोटी

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thanku

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