निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी हाल इसका ज्ञात होता है ना औरों की जवानी
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Explanation:
कबीर के दोहे व्याख्या सहित
यह सभी दोहे क्रमवार लिखे गए है और प्रत्येक दोहे और पद के नीचे आपको निहित शब्द और व्याख्या पढ़ने को मिलेंगे।
पहला दोहा
पाहन पूजे हरि मिले , तो मैं पूजूं पहार
याते चाकी भली जो पीस खाए संसार। ।
निहित शब्द – पाहन – पत्थर , हरि – भगवान , पहार – पहाड़ , चाकी – अन्न पीसने वाली चक्की।
व्याख्या –
कबीरदास का स्पष्ट मत है कि व्यर्थ के कर्मकांड ना किए जाएं। ईश्वर अपने हृदय में वास करते हैं लोगों को अपने हृदय में हरि को ढूंढना चाहिए , ना की विभिन्न प्रकार के आडंबर और कर्मकांड करके हरि को ढूंढना चाहिए। हिंदू लोगों के कर्मकांड पर विशेष प्रहार करते हैं और उनके मूर्ति पूजन पर अपने स्वर को मुखरित करते हैं। उनका कहना है कि पाहन अर्थात पत्थर को पूजने से यदि हरी मिलते हैं , यदि हिंदू लोगों को एक छोटे से पत्थर में प्रभु का वास मिलता है , उनका रूप दिखता है तो क्यों ना मैं पहाड़ को पूजूँ।
वह तो एक छोटे से पत्थर से भी विशाल है उसमें तो अवश्य ही ढेर सारे भगवान और प्रभु मिल सकते हैं। और यदि पत्थर पूजने से हरी नहीं मिलते हैं तो इससे तो चक्की भली है जिसमें अन्न को पीसा जाता है।
उस अन्य को ग्रहण करके मानव समाज का कल्याण होता है। उसके बिना जीवन असंभव है तो क्यों ना उस चक्की की पूजा की जाए।
दूसरा दोहा
लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल।
लाली देखन मै गई मै भी हो गयी लाल। ।
निहित शब्द – लाली – रंगा हुआ , लाल – प्रभु , जित – जिधर , देखन – देखना।
विशेष – अनुप्रास अलंकार , और उत्प्रेक्षा अलंकार का मेल है।
व्याख्या –
कबीरदास यहां अपने ईश्वर के ज्ञान प्रकाश का जिक्र करते हैं। वह कहते हैं कि यह सारी भक्ति यह सारा संसार , यह सारा ज्ञान मेरे ईश्वर का ही है। मेरे लाल का ही है जिसकी मैं पूजा करता हूं , और जिधर भी देखता हूं उधर मेरे लाल ही लाल नजर आते हैं। एक छोटे से कण में भी , एक चींटी में भी , एक सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों में भी मेरे लाल का ही वास है। उस ज्ञान उस प्राण उस जीव को देखने पर मुझे लाल ही लाल के दर्शन होते है और नजर आते हैं। स्वयं मुझमें भी मेरे प्रभु का वास नजर आता है।