निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए-
1. नम्रता ही स्वतंत्रता की धात्री या माता है। लोग भ्रमवश अहंकार वृत्ति को उसकी माता समझ बैठते
वह उसकी सौतेली माता है, जो उसका सत्यानाश करती है।
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नम्रता ही स्वतंत्रता की धात्री या माता है। लोग भ्रमवश अहंकार वृत्ति को उसकी माता समझ बैठते वह उसकी सौतेली माता है, जो उसका सत्यानाश करती है।
इन पंक्तियों का भावार्थ इस प्रकार है..
लेखक का कहना है कि नम्रता अर्थात विनम्र स्वभाव से ही व्यक्ति को सही अर्थों में स्वतंत्रता प्राप्त होती है। क्योंकि स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति का दायरा विस्तृत हो। जब व्यक्ति का स्वभाव नम्र रहता है यानि वह विनम्र स्वभाव का होता है तो उसका दायरा बढ़ता जाता है। वह अधिक से अधिक लोगों के संपर्क में आता है। वह अधिक से अधिक लोगों में लोकप्रिय होता है। विनम्र स्वभाव वाले व्यक्ति को सब पसंद करते हैं, सब उससे बात करना चाहते हैं, इस तरह उसका दायरा बढ़ता जाता है और स्वतंत्रता के लिए अपने दायरे का विस्तार होना आवश्यक है। इस कारण लेखक ने विनम्रता को स्वतंत्रता की माता कहा है।
अपने दायरे की संकीर्णता परतंत्रता का सूचक है। जो लोग अहंकार को अपनाते हैं उनका दायरा संकुचित हो जाता है। सब लोगों उनसे दूर भागते हैं और कोई ऐसे लोगों से बात नहीं करना चाहता। ऐसे लोग अपने आप में ही सिमट कर रह जाते हैं और इस प्रकार से एक परतंत्रता के जीवन में जीते हैं।
इसलिए लेखक ने नम्रता को स्वतंत्रता की माता और अहंकार को उसकी सौतेली माता कहा है, क्योंकि सौतेली माता सदैव अपनी सौतेली संतान का अहित ही करती है। उसी तरह अहंकार वृत्ति भी उसको अपनाने वाले व्यक्ति का अहित ही करती है।