निम्नलिखित पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दोंमें लिखिए :छुद्र नदी भरि चली तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई।।भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहिं माया लपटानी।।समिटि-समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सद्गुन सज्जन पहिं आवा।।सरिता जल जलनिधि महुँ जाई। होई अचल जिमि जिव हरि पाई।।
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छोटी नदियाँ भरकर (किनारों को) तुड़ाती हुई चलीं, जैसे थोड़े धन से भी दुष्ट इतरा जाते हैं। (मर्यादा का त्याग कर देते हैं)। पृथ्वी पर पड़ते ही पानी गंदला हो गया है, जैसे शुद्ध जीव के माया लिपट गई हो।
जल एकत्र हो-होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे सद्गुण (एक-एककर) सज्जन के पास चले आते हैं। नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव श्री हरि को पाकर अचल (आवागमन से मुक्त) हो जाता है
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