Hindi, asked by singhbipinkumar634, 5 months ago

निम्नलिखित प्रस्थान बिंदु के आधार पर 100 से 120 शब्दों में एक लघु कथा लिखिए-
(क) 'एकता में बल' शीर्षक पर आधारित एक लघु कथा लिखिए।
(ख) विद्यालय के द्वारा आयोजित शैक्षणिक भ्रमण को अपने शब्दों में लिखिए।
(ग) 'श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत' की कहानी अपने शब्दों में लिखिए।​

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Answered by ratneshsingh35
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एकता में बल की कहानी

किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। किसान बहुत ही मेहनती था। यही कारण था कि उसके सभी पुत्र भी अपने हर काम को पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया करते थे, लेकिन परेशानी यह थी कि किसान के सभी पुत्रों की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी। वो सभी छोटी-छोटी बात पर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। अपने पुत्रों के इस झगड़े को लेकर किसान बहुत परेशान रहता था। किसान ने कई बार अपने पुत्रों को इस बात के लिए समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी बातों का चारों भाइयों पर कोई असर नहीं होता था।

धीरे-धीरे किसान बूढ़ा हो चला, लेकिन उसके पुत्रों के आपसी झगड़ों का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। ऐसे में एक दिन किसान ने एक तरकीब निकाली और पुत्रों के झगड़े की इस आदत को दूर करने का मन बनाया। उसने अपने सभी पुत्रों को आवाज लगाई और अपने पास बुलाया।

किसान की आवाज सुनते ही सभी पुत्र अपने पिता के पास पहुंच गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके पिता ने उन सभी को एक साथ क्यों बुलाया है। सभी ने पिता से उन्हें बुलाने का कारण पूछा। किसान बोला- आज मैं तुम सभी को एक काम देने जा रहा हूं। मैं देखना चाहता हूं कि तुम में से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है।

सभी पुत्रों ने एक सुर में कहा- पिता जी आप जो काम देना चाहते हैं, दीजिए। हम उसे पूरी मेहनत और ईमानदारी से करेंगे। बच्चों के मुंह से यह बात सुनकर किसान ने अपने बड़े बेटे से कहा, ‘जाओ और बाहर से कुछ लकड़ियां उठाकर लाओ’। किसान ने अपने दूसरे बेटे से एक रस्सी लाने को कहा।

पिता के बोलते ही बड़ा बेटा लकड़ियां लाने चला गया और दूसरा बेटा रस्सी लाने के लिए बाहर की ओर दौड़ा। थोड़ी देर बाद दोनों बेटे वापस आए और पिता को लकड़ियां और रस्सी दे दी। अब किसान ने अपने बेटों को बोला कि इन सभी लकड़ियों को रस्सी से बांधकर उनका गट्ठर बना दें। पिता के इस आदेश का पालन करते हुए बड़े बेटे ने सभी लकड़ियों को आपस में बांधकर गट्ठर बना दिया।

गट्ठर तैयार होने के बाद बड़े बेटे ने किसान से पूछा- पिता जी अब हमें क्या करना है? पिता ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘बच्चों अब आपको इस लकड़ी के गट्ठर को दो भागों में अपने बल से तोड़ना है।’ पिता की यह बात सुनकर बड़ा बेटा बोला ‘यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, मैं इसे मिनटों में कर दूंगा।’ दूसरे नंबर का बेटा बोला ‘इसमें क्या है, यह काम तो आसानी से हो जाएगा।’ तीसरे नंबर का बेटा बोला ‘यह तो मेरे सिवा कोई नहीं कर पाएगा।’ चौथा बेटा बोला ‘यह तुम में से किसी के भी बस का काम नहीं है, मैं तुम सब में सबसे बलवान हूं, मेरे सिवा यह काम और कोई नहीं कर सकता।’

फिर क्या था अपनी बातों को साबित करने में सभी जुट गए और एक बार फिर चारों भाइयों में झगड़ा शुरू हो गया। किसान बोला- ‘बच्चों मैंने तुम सबको यहां झगड़ा करने नहीं बुलाया है, बल्कि मैं देखना चाहता हूं कि तुम से कौन ऐसा है, जो इस काम को बखूबी कर सकता है। इसलिए, झगड़ा बंद करो और लकड़ी के इस गट्ठर को तोड़कर दिखाओ। सभी को इस काम के लिए बारी-बारी मौका दिया जाएगा।’

Answered by sourasghotekar123
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कहानी - श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की

भागवत पुराण में कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाने की एक रोचक कहानी है। एक बार कृष्ण ने ब्रज के ग्रामीणों को देखा (मुख्य रूप से भारत के उत्तर प्रदेश में, मथुरा - वृंदावन के आसपास का क्षेत्र) भगवान इंद्र की पूजा की योजना बना रहे हैं। कृष्ण ने एक बच्चे के रूप में उनसे पूछा कि वे पूजा करके भगवान इंद्र को क्यों प्रसन्न कर रहे हैं। ग्रामीणों में से एक ने कृष्ण को समझाया कि यह हर साल भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है ताकि वे ब्रज के लोगों को आवश्यकता पड़ने पर वर्षा प्रदान करते रहें।

कृष्ण ने इसे अस्वीकार कर दिया और भगवान इंद्र को एक सबक सिखाना चाहते थे कि बिना किसी पूजा या अनुष्ठान के लोगों के लिए बारिश प्रदान करना इंद्र का धर्म (कर्तव्य) है।उन्होंने निवासियों को आश्वस्त किया कि उन्हें इंद्र के लिए पूजा करना बंद कर देना चाहिए। उन्हें किसी भी प्राकृतिक घटना के लिए पूजा या यज्ञ नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, उन्हें गोवर्धन पर्वत का सम्मान करना चाहिए, जिसकी उपजाऊ मिट्टी से वह घास मिलती है जिस पर गाय और बैल चरते थे।और उन गायों और बैलों का भी सम्मान करें जिन्होंने दूध दिया और भूमि को जोता। इन्द्र को ब्रजवासियों से इस बात का क्रोध आ गया कि वे देवराज ब्रज की पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे हैं।उन्हें दंडित करने के लिए, वह वृंदावन की भूमि में बाढ़ के लिए भयानक बारिश के बादल भेजता है। समावर्तक को तबाही के बादल बुलाते हुए, इंद्र ने उन्हें वृंदावन पर बारिश और गरज के साथ वार करने और व्यापक बाढ़ का कारण बनने का आदेश दिया जो निवासियों की आजीविका को नष्ट कर देगा।

वृंदावन के भयभीत लोग मदद के लिए कृष्ण के पास जाते हैं। ग्रामीणों को इस आपदा से बचाने के लिए, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और पूरे गांव को तूफान से बचाने के लिए पहाड़ी के नीचे आ गए।

सात दिनों और सात रातों के लिए, उन्होंने गोवर्धन पर्वत को धारण किया, वृंदावन के निवासियों को मूसलाधार बारिश से आश्रय देने के लिए एक विशाल छतरी प्रदान की।

इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने तबाही के बादलों को वापस बुला लिया। आकाश फिर से साफ हो गया, और वृंदावन पर सूरज तेज चमकने लगा।

इस प्रकार राजा इंद्र का मिथ्या अभिमान चकनाचूर हो गया। वह हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण के पास आया और उनसे क्षमा की प्रार्थना की।

कृष्ण ने उन्हें समझाया कि बिना किसी पूजा या अनुष्ठान की अपेक्षा के लोगों को वर्षा प्रदान करना उनका धर्म (कर्तव्य) है।

कई हजार साल बाद, इसी दिन, श्रील माधवेंद्र पुरी ने गोवर्धन पहाड़ी की चोटी पर स्वयं प्रकट गोपाल देवता के लिए एक मंदिर की स्थापना की।

गोवर्धन पर्वत (पर्वत) को उठाकर, भगवान कृष्ण ने प्रदर्शित किया कि जिस किसी भी उद्देश्य के लिए देवताओं की पूजा की जा सकती है, वह सभी कारणों के सर्वोच्च कारण की पूजा करके आसानी से पूरा किया जा सकता है।

साथ ही, उन्होंने दिखाया कि भगवान प्रकृति में, पेड़ों, पौधों, फूलों, जानवरों आदि में मौजूद हैं। इसलिए भगवान की पूजा करने के लिए, प्रकृति का सम्मान और देखभाल करनी चाहिए।

जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रदान करने के लिए प्रकृति के प्रति आभारी होना चाहिए।

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