Hindi, asked by singhbipinkumar634, 4 months ago

निम्नलिखित प्रस्थान बिंदु के आधार पर 100 से 120 शब्दों में एक लघु कथा लिखिए-
(क) 'एकता में बल' शीर्षक पर आधारित एक लघु कथा लिखिए।
(ख) विद्यालय के द्वारा आयोजित शैक्षणिक भ्रमण को अपने शब्दों में लिखिए।
(ग) 'श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत' की कहानी अपने शब्दों में लिखिए।​

Answers

Answered by ranurai58
7

Answer:

एकता में बल है

एक धर्म सिंह नाम का किसान था। उसके चार बेटे थे।

वे बहुत मेहनती और ईमानदार थे। बस अगर कोई बुरी बात थी तो यह कि उनका आपस में झगड़ा ही होता रहता था। वे किसी बात पर आपस में सहमत नहीं होते थे। यह सब देख उनका पिता धर्म सिंह बहुत दुखी होता था।

एक बार किसान धर्म सिंह बहुत बीमार पड़ गया। अब उसे यह चिन्ता सताने लगी कि अगर उसे कुछ हो गया तो उसके बेटों का क्या होगा। तभी उसे एक तरकीब सूझी। उसने बहुत सी लकड़ियां इकट्ठी की और उनका एक गट्ठर बनाया।

किसान ने अपने बेटों को बुलाया और उन्हें बारी-बारी से वो गट्ठर तोड़ने को दिया। कोई भी उसे नहीं तोड़ सका। उसके बाद किसान ने उस गट्ठर को खोल कर सबको एक एक लकड़ी दी और तोड़ने को कहा। इस बार सबने झट से अपनी-अपनी लकड़ी तोड़ दी।

तब किसान ने सब को समझाया – ” देखो ! जब मैने तुम सब को यह गट्ठर तोड़ने को दिया तो कोई भी इसे तोड़ नहीं पाया। लेकिन जैसे ही उसे अलग करके एक-एक लकड़ी दी तो उसे सब ने आसानी से तोड़ दिया। ऐसे ही अगर तुम सब मिल कर रहोगे तो हर मुसीबत का मुकाबला कर सकते हो, जो अलग-अलग रह कर नहीं कर सकते।

यह बात किसान के चारों बेटों की समझ में आ गई और फिर सब मिल जुल कर रहने लगे। किसान भी बहुत खुश हुआ।

इसलिए कहते हैं – ” एकता में बहुत बल होता है

विद्यालय के द्वारा आयोजित शैक्षणिक भ्रमण

छात्रों को नियमित शैक्षिक भ्रमण पर ले जाया जाता है जहाँ पर छात्र खुले वातावरण में शिक्षा को अपने व्यक्तिगत अनुभवों से परिभाषित करते है शैक्षिक भ्रमण के माध्यम से छात्रों में एक अनुभूति जागृत होती है, जिससे वे भारत की विभिन्नताओं जैसे – इतिहास , विज्ञान शिष्टाचार और प्रकृति को व्यक्तिगत रूप से जान सकते है इसके अतिरिक्त छात्रों में समूह में रहने की प्रवृति , नायक बनने की क्षमता तथा आत्मविश्वास एवं भाई चारे की भावना प्रबल होती है.बच्चे द्वारा स्कूल में बिताए गए समय में सबसे रोचक गतिविधियों में से एक होता है भ्रमण। भ्रमण यदि सुनियोजित तरीके से किए जाएँ तो वे सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के लिए बहुत महत्व रखते हैं।योजनाबद्ध भ्रमण, जिसमें बाहर के स्थानों पर जाने के कार्यक्रम शामिल रहते हैं, आमतौर पर स्वयं में सम्पूर्ण होते हैं। वे किसी एक स्थान पर जाने से सम्बद्ध होते हैं और उनका उद्देश्य मुख्य तौर से बच्चों की रुचि और आनन्द को बनाए रखने का होता है। छोटी उम्र के बच्चों के साथ तथ्यों को रिकॉर्ड करने की कोशिश (जैसा कि बड़ी उम्र के बच्चों के साथ किया जाता है) समय बरबाद करने के बराबर है और ऐसा करने की सलाह कोई खास लाभदायक नहीं है। बल्कि बच्चे तो स्वयं, स्वत:स्फूर्त तरीके से सफल यात्रा के विभिन्न पहलुओं की याद ताजा करने, उन पर चर्चा करने, उन्हें ड्रामाई अन्दाज में प्रस्तुत करने को तैयार रहते हैं। इसलिए सैर के बाद का कार्य उन्हें खुश करने वाले स्वाभाविक ढंग से विकसित होना चाहिए। इसमें शिक्षक भी सावधानी से कुछ मार्गदर्शन कर सकते हैं। जिन स्कूलों में इस प्रकार के नियमित भ्रमण सामान्य गतिविधियों का हिस्सा हैं, वे इस प्रकार के उत्प्रेरकों के मूल्य और उपयुक्तता के बारे में काफी आश्वस्त होते हैं। भ्रमण के बाद की जाने वाली गतिविधियाँ इस प्रकार की हो सकती हैं बुलेटिन बोर्ड पर तस्वीरें, स्मृति-चिह्न, आधिकारिक विवरण पुस्तिकाएँ, विभिन्न माध्यमों में किया गया काम, भ्रमण-स्थान से लाई गई सामग्री आदि प्रदर्शित किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए चिड़ियाघर की सैर से बच्चों द्वारा एकत्र बीजों, पंखों, कंकरों, पेड़ों की छाल आदि की मदद से दीवार पर त्रिआयामी सजावटी चित्रपट्टी और कोलाज बनाए जा सकते हैं

श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत' की कहानी

गोकुल के निवासी देवराज इंद्र से बहुत भयभीत रहते थे। उन्हें लगता था कि देवराज इंद्र ही धरती पर बारिश करते हैं। नगरी के सभी निवासी इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए उनकी बहुत पूजा किया करते थे, ताकि गोकुल पर इंद्रदेव की कृपा बनी रहे। एक बार श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को समझाया कि इन्द्रदेव की पूजा में अपना समय बर्बाद करने से अच्छा है कि तुम लोग गाय-भैंसों की पूजा करो। ये तुम्हें दूध देती हैं। ये पशु सम्मान के अधिकारी हैं।गोकुलवासी श्री कृष्ण की बात जरूर मानते थे। उन्होंने इंद्रदेव की जगह पशुओं को मान-सम्मान देना शुरू कर दिया। जब इन्द्रदेव ने देखा कि अब कोई भी उनकी पूजा नहीं कर रहा है, तो वह इस अपमान से तिलमिला उठे। इन्द्रदेव ने गुस्से में आकर गोकुलवासियों को सबक सिखाने का निर्णय लिया। भगवान इंद्र ने बादलों को आदेश दिया कि गोकुल नगरी तब तक तुम बरसते रहो, जब तक वह डूब न जाए। इन्द्रदेव का आदेश पाकर बादलों ने गोकुल नगरी पर बरसना शुरू कर दिया।

गोकुल नगर में ऐसी बारिश कभी नहीं पड़ी थी। चारों ओर पानी ही पानी नजर आने लगा। पूरे नगर में बाढ़ आ गई। गोकुलवासी घबरा कर श्री कृष्ण के पास पहुंचे। श्री कृष्ण ने सभी गोकुलवासियों को अपने पीछे चलने का आदेश दिया। गोकुलवासी अपनी गाय और भैंस साथ लेकर श्री कृष्ण के पीछे-पीछे चल दिए। श्री कृष्ण गोवर्धन नाम के पर्वत पर पहुंचे और उस पर्वत को अपने हाथ की सबसे छोटी ऊंगली पर उठा लिया। सभी गोकुल निवासी उस पर्वत के नीचे आकर खड़े हो गए। श्री कृष्ण का यह चमत्कार देखकर भगवान इंद्र भी भयभीत हो गए। उन्होंने वर्षा बंद कर दी। यह देखकर गोकुल वासी खुश हो गए और अपने-अपने घर को लौट गए। इस तरह श्री कृष्ण ने अपनी शक्ति से गोकुलवासियों की जान बचाई।

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