निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो।
(क) श्रम करने वाले क्या-क्या करते हैं?
महात्मा गाँधी आश्रम में रहकर क्या-क्या काम करते थे?
(ग) गाँधी जी के लिए श्रम किसके समान था?
(घ) गाँधी जी के श्रम को पूजा के समान क्यों कहा गया है?
(ङ) श्रम से सफलता कैसे मिलती है?
This is the question of 5th class from hindi reader book..
Answers
Answer:
1) मोटे तौर पर यह कार्यकारी-समाज है जिसके अलग-अलग भाग भिन्न-भिन्न काम करते हैं। जैसे- कुछ लोग कृषि करते हैं; कुछ लोग कुम्भकारी करते हैं और कुछ लोग लोहारी करते हैं। भारत की वर्णाश्रम व्यवस्था मूलत: श्रम-विभाजन का ही रूप है।
2)साबरमती में सबको कोई न कोई काम करना होता- खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्जी उगाना। धनी का काम था बिन्नी की देखभाल करना। बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। तो गांधी जी ये सब काम करते थे।
3) गाँधी जी का मानना था कि अगर एक व्यक्ति समाज सेवा में कार्यरत है तो उसे साधारण जीवन (simple life) की ओर ही बढ़ना चाहिए जिसे वे ब्रह्मचर्य के लिए आवश्यक मानते थे।
4)महात्मा गांधी इस भावना से ही मनुष्य जाति को दूर रखना चाहते थे जहां उसके आवश्यकताओं की पूर्ति बिना किसी परिश्रम के हो। ... गांधीजी श्रम के महत्व को प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण मानते है। उनके विचार में ”श्रम करना पूजा के समान हैं। इससे उदात और राष्ट्रप्रेम का भाव दूसरा कोई नहीं हो सकता है।
5)'श्रम' का अर्थ है- तन-मन से किसी कार्य को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील होना । जिस व्यक्ति ने परिश्रम के बल पर आगे बढ़ने की चेष्टा की, वह निरंतर आगे बढ़ा । मानव-जीवन की उन्नति का मुख्य साधन परिश्रम है । जो मनुष्य जितना अधिक परिश्रम करता है, उसे जीवन में उतनी ही अधिक सफलता मिलती है ।